________________ 190 भीमसेन चरित्र देवराज इन्द्र उन्हें सम्बोधित कर कुछ जानकारी दे रहे थेः “वास्तव में देखा जाये तो मानव जन्म ही उत्तम है। श्रेष्ठ है। वहाँ हम जो साधना व सिध्धि प्राप्त कर सकते है ऐसी साधना और सिध्धि हमारे लोक में प्राप्त होना प्रायः दुष्कर है। विशेष कर मुक्ति की साधना तो दुर्लभ है। अतः प्रत्येक प्राणी के लिये मानव जन्म लेना अनिवार्य है। इस संबंध में निस्संदेह मानव हम से श्रेष्ठ है। परन्तु आज अनायास ही मुझे सर्वश्रेष्ठ भीमसेन का स्मरण हो आता है। उसकी स्मृति आते ही मेरा मन स्वंय उस वीर पुरुष के प्रति नतमस्तक हो जाता है। "उफ! न जाने कैसे कैसे कष्ट और विपदाएँ उसने झेली है। राज खोया। नन्हें - नन्हें बालक व पली के साथ रातों रात वनवास स्वीकार करना पड़ा। परिवार का पालन पोषण हेतु एक अन्जान देश में पत्नी व बालकों का परित्याग कर जाना पड़ा। क्षुधाग्नि में अहर्निश प्रज्वलित रहे। विविध प्रकार के अपमान-आक्षेपों को सहन किया। अनेक प्रकार की विडम्बनाओं का सामना किया। अनेकविध कटु अनुभवों मे से गुजरना पडा। तथापि प्रभु के प्रति अटूट श्रद्धावान् बने रहे। अटल विश्वास के साथ दुखों को सहन करते रहे। धरती पर अनेक मानव हैं। परन्तु जिस प्रकार भीमसेन ने पलीधर्म को निभाया वैसा आज तक किसी ने नहीं निभाया। क्या उसका संयम! कैसी उसकी निष्ठा! और उसकी आस्था का तो क्या कहना? वास्तव में भीमसेन उत्तम पुरुष ही है। मेरा उसको बार-बार प्रणाम। ऐसे IUNLOD MUNNT SALA ADAV KUL एक मनुष्य की इतनी प्रशंसा? इन्द्र होकर के मनुष्य का इतना पक्षपाती में जाकर अभी उस पामर मनुष्य को चलित कर डालता हूँ। देवों की सभा में घटी घटना। P.P. Ac. Gunratnasuri M.S. Jun Gun Aaradhak Trust