________________ 233 आचार्यदेव हरिषेणसूरजी __ आचार्य भगवंतने अपनी मृत्यु को सन्निकट समझ, विमलाचल तीर्थ की पवित्र भूमि में अनशन किया। 'खामेमि सव्व जीवे, सव्वे जीवा खमंतु मे' सूत्रानुसार ब्रह्माण्ड में रहे प्राणी मात्र से क्षमा याचना कर शुक्ल ध्यान आरम्भ किया और कालान्तर से समाधि-योग प्राप्त हुए सूरीश्वर ने सिद्ध स्थान का वरण किया। आचार्य हरिषेणसूरिजी ने अपने गुरुदेव की स्मृति प्रित्यर्थ अठ्ठम तप की आराधना की। तत्पश्चात् ग्रामानुग्राम और असंख्य जनपद, देहातों की यात्रा कर चिरकाल विचरण करते हुए उनका राजगृही में आगमन हुआ। आचार्य हरिषेण के आगमन का संदेश प्राप्त होते ही महाराज भीमसेन सपरिवार उनके दर्शनार्थ पहुँच गये। भक्ति भाव से आचार्य भगवंत का वंदन-पूजन कर धर्मोपदेश सुनाने की प्रार्थना की। भीमसेन की प्रार्थना मान्य कर आचार्यदव ने मेघ गंभीर वाणी में धर्मोपदेश आरम्भ किया। "संसार-सागर में डूबते प्राणीजनों के लिए सम्यक्त्व-धर्म नौका समान है। अतः संसार से त्रस्त एवम् भयभीत आत्माओं को सदैव शुभ और विशुद्ध मन से सम्यक्त्व-धर्म की आराधना करनी चाहिए। __महानुभाव! आत्मा की विशुद्धि के लिए श्री जिनेश्वर देव ने बारह भावनाओं को इंगित किया है। इन बारह भावनाओं को नित्यप्रति स्मरण करने से जीव दुरंत ऐसे संसार-सागर को तिर जाता है। ___ अतः हे प्राणी! तुम संसार-सुख की लालसा क्यों रखता है? तुम्हें स्मरण रखना चाहिए कि, संसार के सभी सुख विनश्वर हैं। विद्युत-प्रकाश की भाँति क्षणभंगुर और चंचल है। संसार के भोग-विलास समुद्र की जल-तरंगों के समान है। उसका कोई अंत नहीं है। तिस पर तृप्ति का कहीं नामोनिशान नहीं है। तभी जीव को चाहिए कि, वह संसार की जड स्वरूप मोह का परित्याग करे... माया को विष-वल्लरी समझे और विषमवासना ठीक वैसे ही भोग-विलासों को विपत्ति का मूल मानें। __ इस तरह अहर्निश अनित्य भावना का स्मरण करना चाहिए। हे भव्यात्माओं! इस संसार में प्राणी मात्र को मोक्ष-सुख प्रदान करनेवाले एकमेव आलम्बन स्वरूप श्री जिनेश्वर भगवंत है और उनके अतिरिक्त कोई शक्ति है ही नहीं। जो निंदित आत्मा सपरिवार सदैव प्रमाद में रहता है, वह भला अन्य निःसहाय दुःखी जीवन का संरक्षण करने में कैसे समर्थ हो सकता है? अरे, यमराज के सैनिकों का जब तुम्हें लिवा लाने के लिए आगमन होगा। तब अपने स्वार्थ में अहर्निश लीन-तल्लीन माता-पिता, पुत्र-पली और अन्य परिजनादि कोई P.P. Ac. Gunratnasuri M.S. Jun Gun Aaradhak Trust