Book Title: Bhimsen Charitra Hindi
Author(s): Ajitsagarsuri
Publisher: Arunoday Foundation

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Page 242
________________ आचार्यदेव हरिषेणसूरजी 231 से केश-लुंचन किया। सांसारिक राजसी वस्त्रों का परित्याग किया और श्रमता श्रेष्ठ द्वारा प्रदत्त श्वेत निर्दोष वस्त्र परिधान किये। आचार्यदेव ने मंत्रोच्चार करते हुए हरिषेण को रजोहरण प्रदान किया और तब नामकरण विधि सम्पन्न की। उपस्थित जनसमुदाय के कंठ से निकली जय-ध्वनि से आकाश और दसों दिशाएँ गूंजारित हो गयी। दीक्षा-विधि सानन्द सम्पन्न हो गयी। भीमसेन और स्वजन परिजन तथा लहराते जनसागर ने नवदीक्षित हरिषेण मुनि के चरणों में सादर वंदना की। मुनि-पुंगव ने शांत स्वर में धर्मलाभ का आशीर्वाद दिया। धीरे-धीरे जनसमुदाय बिखर गया। सब स्व-स्थान लौट गये। दूसरे दिन ही आचार्य भगवंतश्रीधर्मघोषसूरिजीने नवदीक्षित मुनि हरिषेण व शिष्य-परिवार समेत अन्यत्र विहार किया। भीमसेन, सुशीला, देवसेन, केतुसेन साथ ही अन्य स्नेही-परिजनों ने अश्रु-पूरित नयन मुनि हरिषेण को विदा दी। . युवराज हरिषेण के दीक्षा ग्रहण करने से भीमसेन अकेला पड गया। बन्धु-वियोग में उसका मन आकुल-व्याकुल हो उठा। उसके स्मरण मात्र से उसकी आँखें भर आयीं। आयु में छोटा होते हए भी संसार-सागर के मध्य में ही वह उसे अकेला छोड गया। किन्तु वह कैसा अभागा था कि, प्रयलों की पराकाष्टा करने के उपरांत भी फानी दुनिया से निकल नहीं सकता था। उसके पश्चाताप का पारावार न रहा। वह अकेला असहाय बन, विश्व की आँधी-तूफान का सामना करने के लिए पीछे रह गया था। वह मन ही मन अपनी आत्मिक-निर्बलता की निंदा करने लगा। लघु बन्धु के संसार-त्याग से राज्य-संचालन का उत्तरदायित्त्व और भी बढ गया था। राज-धुरा वहन करते हुए उसे हर पल हरिषेण की स्मृति सताती रहती थी। तब वह अनायास ही आत्म-संशोधन में खो जाता और विचार करने लगता : “साधु तो चलता भला। आज यहाँ तो कल वहाँ। न जाने अब मुझे उसके दर्शन कब होंगे?" अलबत्त, भीमसेन ने संयम मार्ग का अवलम्बन नहीं किया। परंतु अपना जीवन शुद्ध... सात्विक रूप से व्यतीत करने लगा। उसका झुकाव धर्म-क्रिया की ओर उत्तरोत्तर बढता गया। - इधर हरिषेण मुनि के जीवन में भी आमूलचूल परिवर्तन आ गया। वह यह कतई विस्मरण कर गया कि एक समय स्वयं राजपरिवार का सदस्य था... राजकुमार था। वह एकाग्र हो, आत्मसाधना करने में निमग्न हो गया। ___ आचार्यदेव के सान्निध्य में उसने शास्त्राभ्यास करना आरम्भ कर दिया। व्याकरण, न्याय और अन्यान्य दार्शनिक ग्रंथो का अध्ययन-मनन करने लगा। जप-ध्यान और Jun Gun Aaradhak Trust P.P. Ac. Gunratnasuri M.S.

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