Book Title: Bhimsen Charitra Hindi
Author(s): Ajitsagarsuri
Publisher: Arunoday Foundation

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Page 212
________________ वही राह वही चाह 201 अपनी वहन माना है। बहन के प्रति ऐसे विचार करना महापाप है। तुम आशय पूर्वक मेरे राजमहल में रहना। एक भाई के रिश्ते मैं तुम्हारा सम्मान करूँगा। तुम्हें किसी प्रकार ' का कष्ट नहीं होगा। उठो। जो हुआ उसे सदैव के लिये भूल जाओ। धर्म का पालन करो। आत्मा का उद्धार करो। देह की ममता का त्याग करो। इस जन्म में ऐसी साधना करो कि भवांतर तक ऐसी विपदा का सामना न करना पडे। युवती के छद्मवेश में बैठा देव यह सुनकर स्तब्ध रह गया। वह मन ही मन पश्चाताप करने लगा। उसने तुरन्त अपना माया जाल समेट लिया और क्षणार्ध में ही देव रूप में प्रकट हुआ। 'धन्य भीमसेन! धन्य तुम्हारे सत्यव्रत एवम् एक पली व्रत पर मैं प्रसन्न हूँ। तुम्हारी अग्नि परीक्षा लेने का मैं ने एक से अधिक बार प्रयत्न किया। हर समय तुम उसमें उत्तीर्ण हुए। माँगो माँगोगे वह दूंगा।" देव ने प्रसन्न होकर कहा। "वास्तव में इस धरती पर मेरे सदृश भला कौन सौभाग्यशाली होगा जिसे आज देव के दर्शन हुए। यदि आप मुझ पर प्रसन्न है तो यही वर दीजिए कि वीतराग प्रणीत धर्म - शासन पर सदैव मेरी श्रद्धा अटल - अचल बनी रहे।" भीमसेन ने गंभीर स्वर में कहा। तत्पश्चात् देव ने बलात् उसे दिव्य वस्त्र व रलहार उपहार स्वरूप भेंट किये और वह अदृश्य हो गया। इधर भीमसेन भी कर्म की विचित्र गति पर चिंतन करता निज शिविर में लौट आया और प्रभु-स्मरण कर निद्राधीन हो गया। वही राह वही चाह भीमसेन व उसकी सेना ने गंगा तट पर कई दिनों तक विश्राम किया। यात्रा की थकान लगभग उतर चुकी थी। सैनिक गण पर्याप्त मात्रा में स्फूर्ति व नवचेतना का अनुभव कर रहे थे। प्रदीर्घ प्रवास के कारण अश्वारोहियों की कमर जकड गई थी। वे पूर्ण विश्राम के कारण अपने को स्वस्थ व स्फुर्तिमान अनुभव कर रहे थे। यात्रा के दौरान हुए रात्री जागरण के कारण सैनिकों की आँखे लगातार जल रही थी। अब प्रगाढ निद्रा प्राप्त कर चमक रही थी। सैनिकों के अतिरिक्त गजराज अश्व बैल ठीक वैसे ही अन्य चौपगे पशु भी राहत अनुभव कर रहे थे फलत : स्वस्थ व तरोताजा लग रहे थे। भीमसेन ने सेना को यथासमय प्रस्थान करने का आदेश दिया। सौनिकों ने तुरन्त आदेश की अनुपालना कर यात्रा की तैयारी आरम्भ कर दी। तम्बुओं को उखाडा गया। अश्वों पर जीन करनी जाने लगी। बैलों के गले में घूघरमाल दी गयी। देवसेन व केतुसेन प्रस्थान की तैयारी करने में लग गये। उन्होंने बज्रकवच धारण कर मस्तक पर शिरस्त्राण बांधा। कमर में तलवार लटकाई। कमरबंद में कृपाण खोंसी। पीठ पर तीक्ष्ण तीरों से भरा तरफस बांधा तथा दाहिने कंधे पर धनुष लटकाया शस्त्र - सज्ज राजकुमारों को देखकर किसी को विश्वास नहीं हो सकता था कि से ही कुंवर किसी समय जंगल में भूख प्यास से तडपते भटकते - - फिरते थे। यौवन की कांति से उनका अंग - प्रत्यंग दमक रहा था। सौम्य मुख पर एक अप्रतिम आभा निखर रही थी। तन-बदन वीर्य से चमक रहा P.P. Ac. Gunratnasuri M.S. Jun Gun Aaradhak Trust

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