________________ 218 भीमसेन चरित्र फलस्वरूप सर्व प्रथम वह चिंतित हो उठता है। मन व्यग्र हो जाता है और प्रायः विचारों में खोया रहता है। तत्पश्चात् द्वितीय अवस्था में समागम (मैथुन) की इच्छा उत्पन्न होती है। प्रिय को अपने समीप रखना चाहता है। तृतीय अवस्था में उद्विग्न हो, प्रदीर्घ निश्वास छोडने लगता है चतुर्थ अवस्था में मन्द ज्वर से पीडित होता है। शरीर में उष्णता व्याप्त हो जाती है। तब क्रमशः पंचमावस्था में पूर्ण शरीर में दाह उत्पन्न होता है। काया ताप से जलने लगती है। अंग-अंग विह्वल बन जाता है। नींद व चैन उससे कोसों दूर चले जाते है फलतः छठवीं अवस्था में भोजन के प्रति अरूचि उत्पन्न हो जाती है। खाना नहीं भाता और खाने का प्रयल करता है तो पूरा आहार नहीं ले पाता। सातवीं अवस्था भूख के मारे मूर्छित होने लगता है। वह संज्ञाशून्य बन जाता है। उसका चित्त कही नहीं लगता। और यदि प्रदीर्घ अवधि तक इस अवस्था में रहे तो कभी 2 पागल भी हो सकता है। आठवीं अवस्था में इस पागलपन के दौर में वह आत्महत्या करने के लिये तत्पर हो जाता है। नौवीं अवस्था में वैचारिक उग्रता और असंतुलित मानसिक दशा के फलस्वरुप वह आत्महत्या करने के लिये बाध्य हो जाता है। और सदैव आत्मघात करने का प्रयत्न करता है। अंत में दसवीं अवस्था में उक्त विकार उग्रता धारण कर और दिमागी तालमेल न रहने के कारण अपनी जीवनलीला समाप्त कर बैठता है। इधर युवक ने मन ही मन सोच लिया कि रानी तो अन्तिम दशा में पदार्पण कर चुकी है। यदि वह विरह अग्नि शांत नहीं करेगा तो वह अवश्य ही आत्महत्या कर लेगी? परन्तु रानी तक पहुँचना संभव नहीं था। यदि उसके पास पहुँचे तो कैसे पहुँचे? फलतः गहन विचार में डूब गया। क्या विचार कर कहे हो? युवक को मौन बैठा देख दासी ने पूछा। यह भला संभव कैसे है? मुझे अन्तःपुर में प्रवेश करने कौन देगा? साथ ही यदि किसी ने मुझे वहाँ देख लिया तो मेरे प्राणों पर आ बनेगी। ऐसी स्थिति में मुझे अपनी जान से हाथ धोना पडेगा। इस बात की चिन्ता न करें। यह सब में संभाल लूंगी। कौमुदी महोत्सव की रात्रि में तुम चुपचाप अन्तःपुर के पीछले भाग में आ जाना। मैं वहाँ तुम्हारी प्रतीक्षा करूँगी। उस रात्रि राजा शतायुद्ध अपने सेवक-वर्ग के साथ बाहर गये होंगे। किंतु मैं महारानी को महल में ही रोके रखुंगी। तुम्हे भरपूर एकान्त मिलेगा। साथ रानी का संग। यथेष्ट आमोद - प्रमोद कर स्वर्गीय सुख का आस्वाद लेना। युवक को पूर्ण आश्वस्त कर दासी लौट गई "क्या करके आई?" पता लगा? वह युवक कौन है?" दासी को देखते ही रानी ने उसे अपने निकट बिठाकर प्रश्नों का अंबार लगा दिया। "वह श्रीधर नामक सार्थवाह का पुत्र है। ललितांग उसका नाम है।" कहते हुये दासी ने मंद स्वर में सारी योजना सविस्तार समझायी। रानी दासी की चतुरता पर मुग्ध हो गयी। प्रसन्न होकर उसने अपनी अंगूठी भेंट में दी। P.P. Ac. Gunratnasuri M.S. Jun Gun Aaradhak Trust