________________ 204 भीमसेन चरित्र बल्कि सब कुछ कर्म के अधीन है। जैसा करोगे वैसा भरोगे। जैसा बीज बोओगे वैसी ही पैदावार होगी। शुभ आचार विचार रखोगे तो उसके परिणाम शुभ ही आएँगे। वत्स! नित्य प्रति कर्म का फल मिल कर ही रहेगा और उससे तुम भागकर बच नहीं सकते।. अतः जीवन को शुद्ध व सात्विक रखना। भीमसेन की भाँति सुशीला ने भी मन ही मन अनुभव का सार...तत्व निकाल दिया। यहाँ की हवा का स्पर्श होते ही उसे भूली - बिसरी बाते याद हो आई। किन्तु इन स्मृतियों से वह लेशमात्र भी दुःखी नहीं हुई। ठीक वैसे ही परिवर्तित परिस्थितियों में भी वह मिथ्याभिमानिनी नहीं हुई। उसने सब कुछ कर्म के चरणों में समर्पित कर दिया। तभी द्वारपाल ने प्रवेश कर निवेदन किया। महाराजाधिराज की जय हो! सुभद्र आपके दर्शन का अभिलाषी है। आज्ञा हो तो उसे सेवा में उपस्थित करे? भीमसेन ने उसे अनुमति प्रदान की। कुछ क्षण में ही हृष्ट-पुष्ट और रौद्र मुखाकृति वाले सुभद्र ने शिविर में प्रवेश किया। तत्पश्चात् भीमसेन को प्रणाम करते हुए विनीत स्वर में कहां! "महाप्रतापी राजगृही नरेश मेरा प्रणाम स्वीकार करें।" "आयुष्यमान् भव! कहो, किस प्रयोजन से उपस्थित हुए हो?" भीमसेन ने आशीर्वाद ते हुए कहा। “कृपानाथ आपके चरणों में तुच्छ अर्पण करने आया हूँ। आपके र्शनलाभ से मेरा जीवन सफल हो गया।" और उसने सुवर्ण मुद्रा तथा अलंकारों से antan TIL ILI - हरि सोताठरा तूं चोरी का कार्य छोड़कर, धर्म करने वाला परोपकारी दयालु सञ्जन बन भाई। नरक आदि दुर्गति के गलत मार्ग को छोड़कर स्वर्ग आदि गति का सचा मार्ग पकड़ भाई।" P.P. Ac. Gunratnasuri M.S. Jun Gun Aaradhak Trust