________________ / देव का पराभव 191 भाग्यवान् का दर्शन भी दुर्लभ है। एक पामर मानव की इतनी प्रशंसा? छि! छि! उपस्थित देवों में से एक मिथ्यात्वी देव तिरस्कार से बोल उठा। . “अरे, जिसको तुम एक सामान्य प्राणी समझ रहे हो वह साधारण नहीं है। वरन् परम पुण्यशाली है। और है वीर योद्धा, जिसकी कोई बराबरी नही कर शकता है।" इन्द्र महाराज ने भीमसेन का पक्ष प्रतिपादन करते हुए गंभीर स्वर में कहा। "होगा कोई वीर योद्धा और पुण्यशाली किन्तु देवों के सामने उस योद्धा की भला क्या बिशात? कहाँ अनन्त शक्ति-पूंज सम देवी-देवता और कहाँ अशक्त सामान्य सा एक मानव, देव ने तनिक उत्तेजित हो कहा। __ "दुर्मना तुम भूल रहे हो। स्मरण रहे, मानव की आत्मा जब जागृत होती है तब देवी-देवता तक उसकी शक्ति के आगे नतमस्तक होते हैं।" "अरे मानव को जो नमन करें वह कोई दूसरे ही देव होंगे, मैं नहीं।" हुंकार भरते हुए देव बोला, "तो परीक्षा करके देख लो"। भीमसेन को उसके व्रत से तनिक भी विचलित कर लो तो मैं मान लूंगा कि नहीं देवी-देवता भी है!" "हे देवराज इन्द्र! मैं भी आपको बता दूँगा कि देवी देवताओं की शक्ति की तुलना में मानव कितने शुद्र है।" उस दिन देव सभा में खलबली मच गयी, तनाव की स्थिति पैदा हो गई। इन्द्र की देवों के साथ हुई नोंकझोंक में आनन्द आ गया। इा व मिथ्याभिमान में देवी देवता भी मानव से कही कम नहीं ठहरते। अभिमानी देव ने सर्वप्रथम इन्द्र को अपनी अतुल शक्ति का परिचय देने का मन ही मन निश्चय किया। भीमसेन का व्रत कैसे भंग किया जाये, उसे पथ भ्रष्ट करने की योजना बनाने में लग गया। . गिनती की क्षणोंमें ही उसने अपनी योजना को मूर्त स्वरूप दे दिया तथा सक्रिय होने के लिये देवलोक का परित्याग कर धरती पर उतर आया। . .. इधर देवसभा में जब भीमसेन के विशुद्ध चारित्र्य और अनोखी सूझबूझ की प्रशंसा हो रही थी। उस समय वह अपनी प्रचंड सेना सम्भाल रहा था। .. / ' सेना को भी उसने स्पष्ट शब्दों में सूचना दे दी थी कि भूल कर भी किसी को नुकसान नहीं पहुंचाया जाय, खेत खलियानों को उजाडा नहीं जाय घरों को आग नहीं लगायी जाय। शस्त्रों का उपयोग मात्र अपनी रक्षा के लिये ही करना है। युद्ध हमारा मंत्र नहीं है। और विजय तो हमें शत प्रतिशत अवश्य मिलेगा। किंतु हमें प्रेम की विजय चाहिये। यही विजय सच्चा व अन्तिम है। देवसेन व केतुसेन को भीमसेन ने इसी प्रकार की शिक्षा प्रदान की थी। वह उनके मन मस्तिष्क से हिंसा के भाव सदा के लिये निकाल देना चाहता था 'देवसेन! तुम एक राजपुत्र अवश्य हो। परन्तु उससे पूर्व तुम मानव की संतान हो। तुम राजकुल में अवश्य P.P.AC. Gunratnasuri M.S. Jun Gun Aaradhak Trust /