________________ 180 भीमसेन चरित्र कोई स्खलना हुई हो तो मुझे अवश्य ही दंड देना। यदि मैं पवित्र हूँ... तो यह कलश स्थिर हो जाय।" प्रार्थना समाप्त कर सुशीला ने बालको के साथ जिनालय में प्रवेश किया। इसी समय शिल्पियों ने शिखर पर कलश आरोपित किया। अल्प प्रयलों के अन्तन्तर ही कलश शिखर पर स्थिर हो गया। तत्पश्चात् सुशीला ने भीमसेन व अपने बालक तथा अन्य स्वजनों के साथ संपूर्ण रात्रि मंदिर में जागरण कर व्यतीत की। प्रजाजनों में से भी कई लोग रात्रि में वही रूके। इधर प्रातः में तडके मंदिर के प्रांगण में मानव महासागर लहराने लगा। नगरजनों की बस्ती भी जिनालय के चारों और उभड पडी। भोर की बेला में उषा की प्रथम किरण जब सुवर्ण कलश पर पडी। तब कलश की जगमगाहट से लोगों की आँखें चौधियां गयी। कई दिनों के पश्चात् सूर्य अपनी रजत-रश्मियों से कलश को अभिषिक्त कर रहा था। निर्माण होने के बाद यह प्रथम दिन था कि स्वर्णकलश दूर सुदूर तक अपने तेज से सबको प्रकाशित कर रहा था। सुशीला ने प्रातः भीमसेन को भाव वंदना करते हुए उसका आशीर्वाद ग्रहण या। भीमसेन ने श्रद्धा सिक्त हो उसे धन्यवाद दिया। | नगरजनों ने सोल्लास जयनाद किया : 'महासती सुशीला रानी की जया' और सबकी अभिवंदना करती रानी सुशीला ने राजमहल की ओर प्रस्थान किया। आस-पास में एकत्रित जन-मेदिनी ने हर्षित हो उस (MOOO Mi HamarMarrintine Mallama प्रार्थना करके, 'निसीही' - तीन बार बोलकर के बालकों के साथ जिनमंदिर में प्रवेश करती सुशीला। P.P. Ac. Gunratnasuri M.S. Jun Gun Aaradhak Trust