________________ 176 भीमसेन चरित्र हो जायेगी। क्या मानव-स्वभाव बदल जाएगा। अतः आवश्यकता तो उनके खराब स्वभाव को सुधारने की है। वस्तुतः आपको अपने राज्य में पनप रहे अपराध-पापों को समूल नष्ट करना है। मानव को मृत्युदंड देने से तो मानव ही कम हो जाएँगे। जबकि प्राप्त परिस्थिति से मुझे ऐसा प्रतीत हो रहा है कि अब इनकी आत्मा स्वयं को धिक्कार रही है। पाप के प्रायश्चित से इनका हृदय निर्मल बन गया है। अपने द्वारा किये गये पाप कृत्यों से उनका तन मन पश्चाताप की आग में जल रहा है। अपने आप से घृणा हो गयी है। फिर ये कोई भयंकर अपराधी भी नहीं है। अपराध करना इनकी प्रवृत्ति नहीं है। दोनों ही अच्छे कुल से सम्बन्ध रखते है। इनको बंदी बनाने मात्र से ही इन्हें पर्याप्त शिक्षा मिल गयी है। उत्तम कुल के व्यक्ति के लिये प्रतिष्ठा पर आंच आना मृत्यु दंड से कहीं अधिक पीडाजन्य है। ऐसे व्यक्ति मात्र प्रतिष्ठा के लिये ही जीवित रहते है। अतः मेरा आपसे नम्र निवेदन है कि आप इन्हें मुक्त कर दें।" - विजयसेन ने भीमसेन की आज्ञा शिरोधार्य की। सेठ व सेठानी ने कृतज्ञ भाव से भीमसेन को नमन किया और उनका उपकार माना। इसी प्रकार चोर को भी दण्ड से मुक्ति दिलवाई। तथा भविष्य में चोरी न करने के लिये समझाया। चोर सरल स्वभाव का था। भविष्य में चोरी नहीं करने की प्रतिज्ञा कर भीमसेन के चरणों में गिर पड़ा। सजल नयन गिडगिडाते हुए उसका उपकार मानने लगा। WI M NI ANTONLINLAOUTUmes हरिसोगाठग शेठ लक्ष्मीपति और शेठाणी भद्रा, कृतभाव से भीमसेन को झूक पड़े। P.P. Ac. Gunratnasuri M.S. Jun Gun Aaradhak Trust