________________ निष्फल यात्रा . . 111 क्षितिप्रतिष्ठित नगर से यहाँ आया हूँ। मुझे ज्ञात हुआ है कि इस नगर का राजा अरिंजय बड़ा ही दयालु प्रकृति का हो, परोपकारी है। अतः मैं अपने दुःख-दारिद्र से मुक्ति पाने के इरादे से यहाँ आया हूँ। किन्त यहाँ आने पर ज्ञात हुआ कि, मेरा चक्कर व्यर्थ गया है। क्योंकि राजा अरिंजय कल ही आकर चले गये है और अब वे पूरे छः मास पश्चात् ही आएँगे। अतः यही सोच-सोच कर मैं चिंतित हो रहा हूँ, कि तब तक मैं कहाँ रहूँगा? इस समयावधि को कैसे पूरा करूगा? साथ ही इस नगर से मैं एकदम अपरिचित हो, अनजान हूँ। ऐसी स्थिति में मेरी भला यहाँ क्या अवस्था होगी?" सहसा धनसार को उस पर दया आई। उसने उसके कन्धों को सहलाते हुए बड़े ममत्व भाव से कहा : "भई घबराओ मत। इस संसार में ऐसा ही होता है। अरे, जहाँ भाग्य ही साथ न दे वहाँ भला और क्या हो सकता है? प्राणी मात्र दैव के आधीन है। किन्तु तनिक भी चिन्ता न करो। जिसका कोई नहीं होता, उसका प्रभु होता है। इस अवधि में तुम मेरे यहाँ ही खाना-पीना और दूकान पर काम करना। चलो, उठो। भगवान का नाम लेकर मेरे साथ चल दो! अब चिन्ता छोड़ो और हिम्मत रखो। जिनेश्वर धनसार के आश्वासन से भीमसेन की सारी चिन्ताएँ दूर हो गयीं। उसने उसके प्रति कृतज्ञता व्यक्त की और उसके यहाँ काम पर लग गया। RWAN अंतर व्यथा से टूट पड़ा भीमसेन और अनाज के व्यापारी की उभर पड़ी दया। P.P.AC. Gunratnasuri M.S. Jun Gun Aaradhak Trust