________________ सुशिला का संसार 121 राज पाट मत दो। स्वर्ण के झूले में मत झुलाओ। मेवे-मिष्ठान्न मत खिलाओ। पहनने को बहुमूल्य पौषाकें मत दो। परंतु पेट पालने के लिये रोज लूकी-सूकी रोटी तो दो। बदन ढंकने के लिये मोटा कपड़ा ही दो। निश्चिंतता से नींद तो दो। शैशव की निर्दोश मस्ती व आनन्द तो दो। ___हे विधाता! तुम्हारे इस अन्याय की बात मैं भला किससे कहूँ? क्या यह दुःख कम था, कि तुमने मेरे पति को परदेश भेज दिया। स्वामी के अभाव में मेरी दशा 'जल बिन मछली' के समान हो गयी।" और पति की स्मृति ने सुशीला को सहसा अधिक व्यथित किया। उसके सब्र का बाँध टूट गया। वह फूट-फूट कर रोने लगी। भीमसेन चुपचाप बाहर खड़ा यह दृश्य देख रहा था, अपने परिवार की दयनीय स्थिति देखकर उसकी आँखों से अश्रुधारा बह निकली। वह आज अपना सारा दुःख-दर्द आँसुओं में बहा देना चाहता था। माँ के रोने की आवाज सुनकर दोनों ही बालक जग पड़े और पूछने लगे : "माँ! माँ! तुम क्यों रो रही हो? तुम्हें क्या हो गया है माँ?" बालकों को जागृत जानकर शीघ्र ही उसने अपने आँसू पोंछ डाले और बोली : "कुछ नहीं बेटा! कुछ नहीं हुआ। मैं कहाँ रो रही हूँ? शायद आँख में कुछ गिर गया है. इस कारण तुम्हें ऐसा लग रहा है।" बालक कहीं उसकी वेदना न जान जाए। अत सुशीला ने झूठ का सहारा लेते हुए कहा। "ना माँ! तुम झूठ बोलती हो। तुम्हारी आँखें बता रही है, कि तुम खूब रोई हो माँ! तुम हमसे यों झूठ क्यों बोलती हो? मुझे सत्य कहोन!" देवसेन ने पुनः आग्रह करते हुए कहा : 'हे माँ, मैं रोता है और भोजन की माँग करता हूँ इसलिये तू रोती है? तो माँ रोना मत! अब मैं नहीं रोऊँगा और भोजन भी नहीं मागूंगा। बस, अब तू मत रो माँ।“ केतुसेन ने विह्वल होकर कहा। “नहीं बेटा! मैं तुम्हारे माँगने से नहीं रोई। तुम आराम पूर्वक सो जाओ मेरे लाल। सुशीला उसे सीने से लगाकर प्यार करने लगी।" "माँ! तो क्या आपको पिताजी की याद आ रही है, उनकी चिंता हो रही है? माँ! तुम्हे अचानक यों क्या हो जाता है? तुम इस तरह उदास क्यों हो? प्रदीर्घ निश्वास क्यों छोड़ रही हो?" देवसेन ने पुनः पूछा। वह बड़ा होने के कारण अधिक समझदार व सहनशील था। माँ का दुःख उसे सहन नहीं हो रहा था। ___ “हाँ बेटा! तेरे पिताजी याद आ रहे है। उनकी मुझे सतत चिन्ता हो रही है। न जाने वे अब तक क्यों नहीं आये? मार्ग में कहीं अमंगल तो नहीं हो गया? बार बार ऐसे विचार मन में उठते है और मैं रो पड़ती हूँ।" माँ ने आधा सत्य आधा झूठ बोलकर बालकों को समझाया। "माँ! तुम बेकार ही चिन्ता करती हो। पिताजी तो बस एकाध दिन में आते ही होंगे। तू धैर्य रख। यदि लंबे समय तक राह देखी है तो अब क्या दो चार दिन नहीं निकाल सकती?" देवसेन माँ को आश्वस्त कर रहा था। P.P.AC. Gunratnasuri M.S. Jun Gun Aaradhak Trust