________________ मौत भी न मिली 133 लिया। उस दिन से उसने खुदाई कार्य बन्द कर दिया और वह पत्थरों को तराशने में लग गया। उसने हाथ मे छेनी हथौड़ी उठाई और पत्थर एवम् मिट्टी में जड़े रत्नों को अलग करने लगा। चार दिन के अथक परिश्रम के बाद यह काम समाप्त हुआ। सेठ उसके उक्त कार्य से अत्यधिक प्रसन्न हुआ। उसने भीमसेन की पीठ थपथपाई और काम के लिये बार बार उसे धन्यवाद दिया। भीमसेन ने कड़ी मेहनत व परिश्रम से रत्नों को तराशा था। यदि ये रत्न स्वयं रखले तो कई पीढ़ियों की दरिद्रता दूर हो जाय। परन्तु ऐसी हीन भावना को उसने अपने हृदय में स्थान तक नहीं दिया। उसे तो काम करने में ही आनन्द की प्राप्ति होती थी। साथ ही उसे इस बात का पूर्ण सन्तोष था कि सेठ उसे उचित पारिश्रमिक देकर उसके कार्य का मूल्यांकन करेगा। इसलिये लालच किये बिना ही उसने सभी रन सेठ को दे दिये। इधर सेठ का भीमसेन पर पूरा विश्वास था। ठीक वैसे ही उनकी भावना भी निर्मल थी। वह लक्ष्मीपति व धनसार जैसे मन के मैले नहीं थे। सेठ ने ही भीमसेन से कहा : "ये रल लेकर तुम पास पड़ौस के ग्रामों में जाओ और इन्हें जौहरियों के हाथ बेचकर आ जाओ।" भीमसेन सुन्दर वस्त्र धारण कर और बडे यल से रत्नों को लेकर पास की बस्ती में गया। उसने जौहरी बाजार के कई जौहरियों को रत्न दिखाये। SNET PM रिसोय भीमसेनने अपने को प्राप्त हुए सारे ही रत्नों को अपने शेठ को लाकर सोंप दिए। P.P. Ac. Gunratnasuri M.S. Jun Gun Aaradhak Trust