________________ मौत भी न मिली 129 डूबा ही दिया था। इन सब घटनाओं के कारण उसका मन बड़ा ही उद्विग्न व संतप्त था। अपमान की ज्वाला में वह सुलग रहा था। सेठ के मधुर वचनों ने उसकी हृदय ज्वाला को शांत किया। सहसा उसे लगा जैसे उसका कोई स्वजन ही मिल गया हो। दुःख के बादल हटते नज़र आये। निराशा का अंधकार मिटने लगा और कहीं दूर-सुदूर आशा की किरण उसे दिखाई देने लगी। उसने शांत हो सेठ से कहा : “सेठजी आपकी प्रेरक वाणी से मुझे अथाह सम्बल मिला है। मेरा चित्त शांत हो गया है। किन्तु यह शांति भला कैसे स्थिर रह सकती है? जो दुःख है वह तो निर्धनता का है। भूखमरी का है और है इधर उधर मारे मारे घूमने का। जीविकोपार्जन के लिये जितना भी मिल जाए, मैं उसमें ही संतोष कर लूंगा। क्या आप मुझे कुछ काम न देंगे? इतना उपकार मुझ पर नहीं करेंगे? आपके इस उपकार से मैं कभी उन्नण नहीं होऊंगा। आप जो कहेंगे सो मैं करूगा।" “भाई! मेरी सामर्थ शक्तिनुसार भी मैं तुम्हें कार्य नहीं दे सका तो मेरा जीवन निरर्थक है। उसकी कोई सार्थकता नहीं। अतः मैं तुम्हें अवश्य कार्य दूंगा। हम लोग अर्थोपार्जन के लिये ही घर से निकले है। यहाँ से बहुत दूर एक रोहणाचल पर्वत है। वहाँ कई खदानें हैं। ये खाने रत्नों की है। हीरा, मोती, माणक, पन्ना इत्यादि बहुमूल्य रत्नों को हमें इन खानों से निकालना है। तुम भी हमारे साथ चलो। खाना पीना और हरि सोमपारा ... शेठने पूछा - भाई तूं कौन हैं? आपत्ति कर्मों को लेकर आती है, नाहिम्मत हुए बिना, हिम्मत से जीओ, धर्म करो, मैं सहायक गनूंगा। P.P. Ac. Gunratnasuri M.S. Jun Gun Aaradhak Trust.