________________ 119 सुशिला का संसार "माँ! मुझे भूख लगी है, खाने को कुछ दो।" "बेटा यह भी कोई खाने का समय है? अभी तो बहुत रात बाकी है। सुबह होने में काफी समय है। सो जा मेरे लाल। प्रातः अवश्य खाना दूंगी। अब तो सो जा।" सुशीला ने केतुसेन को थपथपाते हुए कहा। “ना, माँ! तुम झूठ बोलती हो। कल भी तुमने यही कहा था। जबकि सुबह से अब तक कुछ भी खाने को नहीं दिया। नहीं माँ! मुझे जोर से भूख लगी है और मारे भूख के मुझे नींद भी नहीं आ रही है। माँ! मुझे कुछ तो खाने को दो। ऐसा क्यों कह रही हो? मुझे भूखा क्यों रख रही हो?" ___नहीं, नहीं बेटे! कल जरूर दूंगी। मैं झूठ नहीं बोलती रे! कल भी मैंने झूठ नहीं कहा था। सचमुच, मैं जिस सेठ के यहाँ काम करती हूँ उसने मुझे कुछ भी नहीं दिया। तभी तो भूखा रहना पड़ा मेरे लाल। पर कल ऐसा नहीं होगा। दूसरे सेठने मुझे आटा, शक्कर और घी देने का वादा किया है। अतः मैं तुम्हे गरम गरम भोजन खिलाऊँगी। मेरे लाडले अब तो तू सो जा।" केतुसेन को बहलाते हुए सुशीला ने कहा। "परंतु माँ! ऐसा कब तक चलेगा? अब मैं सहन नहीं कर सकता।" . "बेटा! अब हमें अधिक दिन दुःख उठाने नहीं पड़ेगे। तुम्हारे पिता परदेश गये हुए है और बहुत जल्द लौट आएँगे। वे खूब धन कमाकर लायेंगे। फिर मैं तुम्हें हर रोज मिठाई खिलाऊँगी... अच्छे अच्छे कपड़े पहनाऊंगी... खेलने के लिये भाँति भाँति के खिलौने लाकर दूंगी" "परन्तु माँ! पिताजी ने तो छः माह बाद ही लौटने का कहा था। क्या अभी छः माह पूरे नहीं हुए है?" खिलौने की बात सुनकर केतुसेन शांत हो गया। __अरे, छ: महीने तो कब के पूरे हो गये बेटा! परंतु न जाने अब तक क्यों नहीं लौटे? मुझे भी यही चिन्ता प्रतिदिन खा रही है। उन्हें कुछ हो तो नहीं गया? वह स्वस्थ तो हैं न? वहाँ वे सुखी तो हैं न? न जाने क्या करते होंगे? कहाँ खाते-पीतें होंगे? कहाँ रहते होंगे? ऐसे तो कई विचार मेरे मन में निरन्तर उठते रहते हैं। उनकी राह तकते तकते तो मेरी आँखें भी पथरा गयी हैं और दिन गिनते गिनते हाथों के पोर भी घिस गये हैं। पर बेटा! तू चिन्ता मत कर। तुम्हारे पिताजी अब शीघ्र ही आ जायेंगे। बस, अब तू सो जा।" और सुशीला केतुसेन को थपथपाकर सुलाने लगी। कुछ समय बाद केतुसेन सो गया। अरे, माँ के हाथों में वह जादू है, जिसका स्पर्श .. करते ही भूखे बालक शांति पूर्वक सो जाते हैं। केतुसेन भी माँ का वात्सल्य पूर्ण स्पर्श पाते ही शीघ्र ही निद्रा की गोद में चला गया। P.P.Ac. Gunratnasuri M.S. Jun Gun Aaradhak Trust