________________ मौत भी न मिली 123 लीन हो गया। अपने जीवन में जाने अनजाने स्थूल व सूक्ष्म रूप में घटित अपराधों को याद करने लगा। समस्त जीवों को सम्बोधित कर उसने विनीत स्वर में कहा : "ब्रह्माण्ड के हे जीव धारियों! मैंने अज्ञानतावश, आलस व प्रमाद वश तुम्हारे प्रति घोर अपराध किये होंगे। तुम्हें अति दुःख पहुँचाया होगा। तुम्हारी आत्मा को कष्ट देकर प्रसन्नता अनुभव की होगी और तुम्हारे अन्तर्मन में क्लेश पैदा किया होगा। मेरे द्वारा किये गये उक्त कार्यों के लिये कभी आपको दःख व कभी आपको क्रोध का सामना करना पड़ा होगा। इन सब पापों के लिये आपसे विनम्र होकर क्षमा माँगता हूँ... क्षमा याचना करता हूँ। कृपा कर आप मेरे समस्त अपराधों को क्षमा करें। ___आप सबका मुझ पर अत्यन्त उपकार है. और मैं आप सबका ऋणी हूँ। किन्तु आज मैं उसका यथेष्ट प्रतिदान देने की स्थिति में नहीं हूं। अतः मुझ पर दया और करूणा की वर्षा कर मुझे ऋण भार से मुक्त करें। मैंने इस जीवन में अति कष्ट कर दुःखों का अनुभव किया है। फिर भी इसके लिये मैं आपको उसका निमित्त नहीं मानता, ना ही इसके लिये आपको दोष-पात्र मानता हूँ। यह सब मेरे ही कर्मों का फल मुझे मिल रहा है। पूर्वभव के अशुभ कर्मों के फल स्वरूप ही इस जन्म में ये सब दुःख दर्द, सन्ताप मुझे भोगने पड़ रहे हैं। हे अरिहन्त भगवंत! आपको प्रणाम! हे सिद्ध परमात्मा! आपको मेरा प्रणाम! हे पूज्य आचार्य भगवन्त! मैं आपके चरणों में प्रणिपात करता हूँ। हे सर्व लोक के मुनि भगवन्त कृपा कर मेरा अन्तिम प्रणाम गहण करें। इस तरह प्रार्थना कर भीमसेन ने जटाओं को अपने गले के चारों ओर कर लपेटना आरम्भ किया और स्वयं अध्धर झूलता नमस्कार महामंत्र का रटन करता हुआ मृत्यु की प्रतिक्षा करने लगा। मौत भी न मिली पुरुषार्थ व प्रारब्ध जीवन के दो चक्र है। दोनों पहिये बराबर हों तो जीवन निष्कंटक सीधी गति से चलता रहता है। परंतु दोनों में से किसी एक चक्र में रूकावट आ जाय तो जीवन का सन्तुलन डाँवाडोल हो जाता है और अगर प्रारब्ध का चक्र तनिक भी बिगड़ जाय तो समझ लेना चाहिए कि जीवन का सर्वनाश हो सकता हैं। चक्र की जरा खराबी जीवन को पतन के गहरे कुँए में धकेल देती है। उसे तहस नहस और शीर्ण-विशीर्ण कर देती है। ___ जीवन में सुख दुःख लगे ही रहते हैं। जैसे मानव के शुभा-अशुभ कर्म! वैसे ही उसे फल प्राप्ति होती है। जीवन में जब अशुभ कर्मों का उदय होता है तब मानव पर दुःखों का पहाड़ टूट पड़ता हैं। उसके जीवन में आपत्ति और विपत्तियों का ज्वार आ गया। इन दुःखों से मानव पीड़ित होता है, विलाप करता है। रह P.P. Ac. Gunratnasuri M.S. Jun Gun Aaradhak Trust