________________ 126 भीमसेन चरित्र विधाता ने सूर्य, चन्द्र, वृक्ष, नदी, गाय व सज्जन पुरूषों का सृजन परोपकारी कार्यों के लिये ही तो किया है। जो मानव उपकार का कार्य नहीं करते उनसे तो जंगल की घास उत्तम है। क्योंकि वह घास होकर भी अपने प्राणों की आहूति देकर पशुओं के पोषण का साधन बनती है। युद्धरत सैनिकों के प्राणों की रक्षा करती है। श्री जनार्दन ने एक बार तराजू में रखकर परोपकार व मुक्ति का मूल्यमापन किया। और निष्कर्ष निकाला कि मुक्ति की अपेक्षा परोपकार का मूल्य अधिक है। वह अमूल्य है। कहा जाता है कि परोपकार करने हेतु स्वयं श्री जनार्दन ने दस दस बार अवतार धारण किया। भूतल पर प्रायः सभी जीव निज सुख-स्वार्थ हेतु ही जीवित रहते हैं। परंतु जो परोपकारार्थ अपना जीवन अर्पित करता है, उसका जीवन ही सार्थक माना जाता है। शेष परोपकार विहीन मानव-जीवन तो तिरस्कार पात्र है। मनुष्य की अपेक्षा तो पशु-पंछी अधिक उपकारी है। जो मानव की विविध प्रकार से सेवा करते हैं। जीवित अवस्था में वे मानव जाति का अनेक प्रकार से भार वहन करने का कार्य करते ही हैं। किन्तु मृत्यु के पश्चात् भी अपना चाम दाँत-सींग और हड्डी प्रदान कर मानव जाति का कल्याण करते हैं। परोपकार की भावना से प्रेरित होकर वृक्ष अपने अमृत तुल्य फल प्रदान करते हैं। यह करते हुए उन्हें कई प्रकार के कष्ट और नानाविध आपत्ति-विपत्तियों का सामना करना पड़ता है। पत्थरों की चोट सहन करते हुए भी फल प्रदान करना वह अपना परम कर्तव्य समझते हैं और आनंदित होकर अपने कर्तव्य का पालन करते हैं। ___ गाय अपने बछड़ो को भूखा रखकर मानव जाति का पोषण करती हैं, मनुष्य दूध निकालने के लिये उसके थनों को बेरहमी से मसल कर उन्हें दुःख देता है। परंतु ये परोपकारी पशु मानव के इस अनुचित व्यवहार को जरा भी मन में नहीं लाकर परोपकार करने से बाज नहीं आते... अपनी आदत को नहीं छोडते है। ___ फल भार से वृक्ष झुक जाते हैं। जल भरे बादल भी नीचे आते हैं। ठीक उसी प्रकार सज्जन पुरूष भी समृद्धि प्राप्त करने के उपरान्त विनम्र बन जाते हैं। परोपकार प्रेमियों का यह सहज स्वभाव है। / कान की शोभा धर्म चर्चा श्रवण करने से है, न कि स्वर्ण कुण्डलों से। हाथ दान से सुशोभित होते है, कंगन से नहीं। वैसे ही शरीर भी परोपकार करने से सुन्दर लगता है, चन्दन लगाने से नहीं। सूर्य कमल को विकस्वर करता है, क्योंकि सूर्योदय ही उसका प्राण है। चन्द्रमा कैरव समूह को विकसित करता है ... मेघ पृथ्वी की प्यास बुझाते हैं। किन्तु इसके लिये सूर्य चन्द्र और पृथ्वी कभी किसी माँग अथवा याचना का इन्तजार नहीं करते। वे स्वयं अपना कर्तव्य समझकर कार्य करते है। सज्जन सत्पुरुषों का भी स्वभाव ऐसा ही होता है। P.P. Ac. Gunratnasuri M.S. Jun Gun Aaradhak Trust