________________ मौत भी न मिली 125 श्वास रूद्ध हो गया। नाडी की गति निश्चल हो गयी। गला जकड़ गया। आँखों के डोरे . इधर उधर चकराने लगे। ललाट की नसें तन कर सिकुड़ गयीं। सिर के बाल खड़े हो गये। हाथ शिथिल हो गये। दम घुटने लगा। हृदय की धड्कन मंद पड़ने लगी। परंतु भीमसेन को इसकी तनिक भी चिन्ता नहीं थी। क्योंकि उसे यह अच्छी तरह ज्ञात था कि यह पीड़ा कुछ ही क्षणों की है। उसके बाद तो वह जीवन की समस्त यातनाओं से सदैव के लिये मुक्त हो जायगा। परंतु विधाता ने तो भीमसेन के लिये कुछ और ही सोच रखा था। उसने सुख प्राप्ति की इच्छा की तो उसे दुःख प्राप्ति हुई, भिक्षा माँगी तो तिरस्कार मिला। नौकरी माँगी तो बेकारी मिली। अरे! यहाँ तक कि मौत माँगी तो जीवन मिला। कहीं पर भी विधाता ने उसकी प्रार्थना नहीं सुनी। वह शायद किसी और मिजाज में था। भीमसेन को उसने मौत के मुंह से बाहर ढकेल दिया। सेठ ने आकर भीमसेन पर दया की। उसके प्राण बचा कर परोपकार का कार्य किया। किसी ने सत्य ही कहा है, कि जो मानव दूसरों की भलाई के लिये प्रयत्न नहीं करता, उसका जीवन निष्फल है। मनुष्य का हर सम्भव यही प्रयास रहना चाहिए कि सदा सर्वदा दूसरों का उपकार करें। परोपकार करते हुए अगर कभी प्राणों की आहुति देने का अवसर भी आये तो पीछे हठे नहीं। क्योंकि परोपकार करते हुए मृत्यु का वरण भी श्रेष्ठ है। हरिसोमाता / बच्चों का दुःख देखकर सहन न कर पाने पर, भीमसेन का आत्महत्या का प्रयास, व श्रेष्ठि तलवार का वार कर उसे बचा रहा हैं। P.P. Ac. Gunratnasuri M.S. Jun Gun Aaradhak Trust