________________ 116 भीमसेन चरित्र जायगा। फलतः धन के लोभ में उसने आँखें तरेरते हुए उच्च स्वर में कहा : "अरे नीच, तुम्हे दुःखी जानकर तो मैंने तुम पर दया कर अपने यहाँ नौकरी दी और तुम हो कि उलटे मेरे ही गले पड़ रहे हो, नालायक कहीं के... तुम्हें तनिक भी हया है कि नहीं? मेरा अहसान मानना तो दूर रहा, तुम तो मुझ पर ही दोषारोपण कर रहे हो? वास्तव में तुम बदमाश ही हो। नहीं तो अरिंजय व जीतशत्रु तुम्हारी सहायता नहीं करते? जा भाई जा, अपना रास्ता नापो, फिजूल की मगज पच्ची कर मेरा समय बर्बाद मत करो।" भीमसेन का तिरस्कार कर धनसार सेठ अपने काम पर लग गया। भीमसेन तो इस नये संकट से और भी घबरा गया। जीतशत्रु द्वारा किये गये निराशा के प्रचंड प्रहार से वह किसी तरह अपने को सहजकर पाया था, कि धनसार ने एक और आघात पहुँचा दिया। फलतः वह बुरी तरह से मर्माहत हो उठा था। मारे असह्य वेदना के उसका हृदय टूकडे टूकडे हो चुका था और रोम रोम में क्रोध का ज्वालामुखी ढाडे मार रहा था। परंतु परिस्थिति का ध्यान रख उसने विवेक व संयम से काम लिया और हताश व उदास हृदय वह वहाँ से निकल पड़ा। नौकरी की आशा निराशा में बदल जाने के कारण भीमसेन को धन की चिन्ता के साथ साथ पत्नी व बालकों की चिन्ता भी सता रही थी। वे लोग क्या करते होंगे? असहाय, अबला सुशीला न जाने कैसे अपना व अपने बच्चों का गुजारा चलाती होगी? देवसेन व केतुसेन का क्या हुआ होगा? क्या उनको प्रतिदिन भोजन उपलब्ध होता HTTAR LAL हरि सोभादरा धनसार ने भीमसेन का तिरस्कार करते हुए कहा कि - "तेरे कोई शस्त्र मेरे पास नहीं है" . तू तेरा रास्ता सीधी तरह पकड़, नहीं तो तेरी मरम्मत लोगों के द्वारा मुझे करवानी होगी। P.P.AC. Gunratnasuri M.S.. Jun Gun Aaradhak Trust