________________ भीमसेन चरित्र प्रवीण हो गये हैं। समस्त व्यवस्था आप ही संभालते हैं। फिर भी दासी जैसी एक मामूली स्त्री आपको दास और नौकर समझे। यह मुझसे सहन नही हो सकता। __अब यह गुलामी मुझसे एक पल भी सहन नहीं होती। ऐसा अपमान सहने और गुलाम गिने जाने की अपेक्षा तो बेहतर है कि, मैं गले में फाँसी लगाकर मर जाऊं| किसी भी कीमत पर अब मुझे कुत्ते की जिन्दगी बसर करना मंजूर नहीं है..." हरिषेण ने शांत रहकर रानी की पूरी बात सुनी। लेकिन उसका रोम-रोम प्रज्वलित हो उठा था। अपमान की धधकती ज्वाला उसके अंग प्रत्यंग को भस्म कर रही थी। फिर भी उसने शांत स्वर में कहा : "प्रिये! तुम शान्त हो। मेरे होते हुए भला तुम्हें अकारण ही चिन्तित होने का कोई कारण ही नहीं है। इस राज्य का कर्ताधर्ता मैं ही हूँ। नगरवासी मेरी ही आज्ञा का पालन करते हैं। अरे, भीमसेन को तो इस राज्य में कोई पहचानता तक नहीं। सारा प्रताप और सत्ता मेरे ही हस्तगत है। भीमसेन तो नाम मात्र का राजा है। वह इस राज्य में कुछ भी करने में समर्थ नहीं है, क्योंकि मेरी आज्ञा के बिना पूरे देश में एक पत्ता भी नहीं हिल सकता। हे प्राणेश्वरी। अब तुम अधिक दुःखी मत हो। तुम तो मेरा जीवन हो, मेरा आनन्द हो। तुम्हारा यह दुःख मैं देख नहीं सकता। अतः तुम स्वस्थ बन, सारी चिन्ताओं को भगा दो। मैं तुम्हारे सभी मनोरथ पूरे करूंगा। विश्वास करो इस राज्य में मेरा ही शब्द चलता है और मैं जो भी सोच लूं - वह करने की मुझ में शक्ति और क्षमता दोनों है। अतः नाहक की खेद न करो, बल्कि तनिक हिम्मत से काम लो।" स्वामी! आपका कथन यथार्थ है। फिर भी राजा तो वही गिना जाता है, जो राजगद्दी पर विराजमान हो। यदि नौकर शासन व्यवस्था सुचारू रूप से चलाये तो भी आखिर नौकर ही है, वह राजा तो नहीं बन जाता। और ना ही उसे प्रजाजन राजा मान कर सम्मान देते हैं। मान लीजिये कि नरेश भीमसेन कुछ भी नहीं करते। वह पूरा दिन स्वर्गिक सुख में लीन रहते हैं और आप पूरा दिन गधे की तरह बेगार करते है। अत्यधिक श्रम कर राजा की सेवा करते है। लेकिन उससे क्या? सिवाय चिन्ता व दुःख के आपको आखिर हासिल क्या होता है? और जब भीमसेन ही राजा है, तो फिर आप ऐसी बेगार किस लिये करते है? इससे आपको कुछ भी लाभ होने वाला नहीं है। अतः मैं तो अपना जन्म तभी सफल मानूंगी जब आप भीमसेन को राज्य भ्रष्ट कर राज्य पद धारण कर लेंगे...।" P.P. Ac. Gunratnasuri M.S. Jun Gun Aaradhak Trust