________________ 84 भीमसेन चरित्र किया। इसी कारण इस भव में मुझे असह्य दुःखों का सामना करना पड़ रहा है। अतः आज मैं अंतर्मन से आपकी स्तुति भक्ति कर प्रार्थना कर रहा हूँ कि मूझे आपके धर्म की प्राप्ति हों। परमाराध्य! मेरी मति भ्रष्ट हुई है, मैं आपके समक्ष अपने दुश्चारित्र का वर्णन भला किन शब्दों में करू? और ऐसा करना सर्वथा व्यर्थ है। क्योंकि आप तो समस्त संसार के पदार्थों को हस्तामलकवत् प्रत्यक्ष दृष्टिगोचर कर रहे है। हे दीन दयाल! आप तो जगत के उद्धारक है। आपके अतिरिक्त इस जगत में मेरे दुःखों का निवारण कर्ता और कोई नहीं है। अतः मैं भला किसके पास दया की याचना करू? ____प्रभु! मैं आपसे धन की याचना नहीं करता। अब मुझे केवल सत्त् तत्वों में शुभ रत्न समान और सर्व इच्छित ऐसे परम मांगलिक मोक्ष पद की कामना है। यही मेरे दुःखी हृदय की एक मात्र याचना है। है जगदीश! मुझे यह प्रदान कर मेरा उद्धार करो।" इस प्रकार से प्रभु भक्ति कर भीमसेन पुनः अपने परिवार के पास लौट आया। नौकरी की तलाश वीतराग प्रभु की स्तुति करने से भीमसेन की सारी चिंताएँ जल कर भस्म हो गयी। वह चिंताओ से मुक्त हो गया। उसके मन का बोझ हलका हो गया। हृदय उल्लसित और प्रफुल्लित बन गया। अतः उसने सुशीला से सोस्ताह कहा, “प्रिये! तुम व कुंवर यहीं पर विश्राम करो। मैं नगर में जाकर भोजन आदि का प्रबन्ध कर आता हूँ।" इधर सुशीला एवं राजकुमार अपनी थकान उतारने के लिए बावड़ी के तट पर पेड़ की शीतल छाया में बैठ गये और प्रभु का स्मरण करने लगे। भीमसेन ने नगर की ओर प्रस्थान किया। नगर का मुख्य बाजार हाट-हवेलियों से भरा पड़ा था। बाजार में ग्राहकों की अत्यधिक भीड़ थी। वहां अनेक प्रकार की खरीददारी हो रही थी। भीमसेन भीड़ से बचता हुआ एक व्यापारी की दुकान पर आ पहुँचा। भरे बाजार में यहीं एक ऐसी दुकान थी, जहाँ कोई ग्राहक नजर नहीं आ रहा था और व्यापारी ग्राहकों की ओर आतुर नजर देख रहा था। भीमसेन उसकी दुकान के नाके पर इस तरह बैठ गया कि, जिससे आने-जाने वाले को किसी प्रकार की असुविधा न हो और मन ही मन सोचने लगा कि, योजना की व्यवस्था अब भला किस प्रकार की जाये! P.P.AC. Gunratnasuri M.S. Jun Gun Aaradhak Trust