________________ 92 भीमसेन चरित्र बनानी है। वर्तन साफ करने है, सारे भवन की सफाई करनी है। अनाज बिनना है। ऐसे अनेको काम अभी बाकी है। पाँव पसार कर बैठने से काम नहीं चलेगा। और भद्रा बैठे-बैठे एक के बाद एक हुक्म चलाने लगी। सुशीला भी क्रम से काम निपटाती गई। अपनी सामर्थ्य के अनुसार वह काम पुरा करती रही। परंतु भद्रा को भला यह सब देखने को फुर्सत कहां थी? वह तो अपने मद में ही मस्त थी। परिणाम स्वरूप हूक्म पर हुक्म छोड़ती जा रही थी। बीच-बीच में वह तड़ भी जाती, यह भी कोई कचरा साफ किया है। आँखे है या कोडा? देख तो जरा यहां कितना सारा कचरा व गंदा है। अरी अभागन तु तो बिलकुल कमजोर निकली। और ये बर्तन कितने मैले-कुचैले रखे है। पहले जरा बर्तन मांजना सीख। काम करने से तुम्हारे हाथों की मेहन्दी नहीं उतर जाएगी, समझी! यदि बच्चों को ही सम्भालना था तो जख मारने के लिए यहाँ चली आयी? खबरदार! यदि इन बच्चों के पीछे अपना समय बर्बाद किया है तो? मेरे जैसी बुरी कोई नहीं होगी! यहां तु मेरे घर का काम करने आई है। अपने बच्चों को खिलाने पिलाने नहीं समझी! भद्रा दिन भर इसी प्रकार की सुशीला को जली कटी सुनाती रही बुरा भला कहती जो नहीं कहना चाहिए। ऐसी अनर्गल बाते भी वह सुशीला को कह देती। फलतः उसकी कटु वाणी सुन अनायास ही उसकी आंखे भर आती, परन्तु स्वयं को संयम में पर . ܠܘܚ अरी ओ महारानी! खडी क्यों हो? अभी तो ऐसे-ऐसे दस घडे पानी भरना है!! P.P.AC. Gunratnasuri M.S. Jun Gun Aaradhak Trust