________________ सुशीला कपडे और पसीने से तरबतर क्लांत शरीर को आराम देने की भी उसने आवश्यकता न समझी। राज दरबार में प्रवेश कर महाराज गुणसेन को प्रणाम कर वह नतमस्तक एक ओर खड़ा रह गया। सुमित्र को अपने समक्ष उपस्थित देख, गुणसेन. हर्षोत्फुल्ल हो उठा। उसने उसक स्वागत किया। दो कदम आगे बढ़कर उसे गले लगाया और उसकी कुशल क्षेम पूछी। तत्पश्चात् उसे उचित आसन प्रदान कर बैठने का संकेत किया। राजा गुणसेन ने उसका ऐसा स्वरूप देखकर ही समझ लिया था, कि रास्ते में कहीं भी विश्राम किये बिना ही वह सीधा आया है। फलतः उसने उसके लिये शीतल जल मंगवाया। प्रदीर्घावधि से सुमित्र ने मातृभूमि का संजीवनी तुल्य जल पीया नहीं था। अतः शीतल जल पान करते ही उसके धधकते शरीर को परम शांति प्राप्त होती है। शीतल जल के स्पर्श मात्र से ही मानो प्रवास की आधी थकान उतर गयी। पानी पीकर वह स्वस्थ हुआ, प्रशस्त भाल-प्रदेश पर उभर आये प्रस्वेद-बिन्दुओं को उत्तरीय वस्त्र से पोंछते हुए उसने अपने साथ लाई लग्न पत्रिका राजा गुणसेन को सादर प्रदान की। गुणसेन ने ध्यान से पत्रिका पढ़ी और पढ़ कर सुमित्र से पूछा : “सुमित्र तुमने निहायत उत्तम व श्रेष्ठ कार्य किया है। किन्तु हमे भी तो बताओ कि तुमने जो कन्या देखी है वह कैसी है? उसका कुल कैसा है? उसके माता पिता कैसे है? तुम जब RANAI maal RUNNILIHOM 2 .:23 - hMY रिसोमपुरा सुमित्र का कौशाम्बी से लौटना और राजगृही में वापिस आ पहुँचना। P.P. Ac. Gunratnasuri M.S. Jun Gun Aaradhak Trust