________________ भीमसेन का संसार प्रतीक है?..." वह शीघ्र ही शय्या में उठ बैठी और नवकार मन्त्र का स्मरण करती हुई भीमसेन के जागृत होने की प्रतीक्षा करने लगी। भीमसेन उस समय गहरी नींद सो रहा था। सुशीला ने उसके शयन कक्ष में प्रवेश कर धीरे से उसे जगाया। भीमसेन के जागृत होने पर उसे प्रणाम कर वह कोमल स्वर में बोली : “वसुधाधिपति! शान्त और तेजस्वी कान्तिवाले आपश्री सभी के दुःख सदैव दूर करते हैं। आप स्वयं कर्म और धर्म दोनों के उत्कृष्ट साधक हैं। हे प्रजापति! इस लोक में समस्त प्रजा का पालन करनेवाले आप उनके वास्तविक पिता हैं। जबकि उनके माता-पिता तो मात्र जन्मदाता हैं। ___हे ईश! मैं आपके चरणों की छाया में आई हूँ। आपकी छाया वस्तुतः सब सुखों की दात्री हो, जीवन पुष्प को विकस्वर करनेवाली अमोघ शक्ति है। हे पुरुष श्रेष्ठ! आप अपनी स्नेह दृष्टि का अभिषेक कर मुझे आनन्दित कीजिये। हे जननायक! आपकी कृपा-दृष्टि प्राप्त होते ही सबके सकल मनोरथ पूर्ण होते देर नहीं लगती।" सुशीला की मंजुल वाणी कान में पड़ते ही भीमसेन पूर्ण रूप से जागृत हो गया। उसने रानी को बैठने का संकेत करते हुए पूछा : "अरे! देवानुप्रिये! आप इस समय? अभी जो काफी रात्रि शेष है? इस प्रकार आपके आगमन का क्या मतलब?". सुशीला ने मंद स्वर में अपने स्वप्न की सारी बात बतला दी। भीमसेन ने श्रवण कर स्वप्न का फल बताया - "हे प्रिये! तुमने जो स्वप्न देखा है, वह अत्यन्त ही शुभ और मंगलमय है। इस स्वप्न से ध्वनित होता है कि, तुम शीघ्र ही माँ बनने वाली हो। तुम्हारी कोख से पुत्र-जन्म होगा और वह पुत्र निखिल ब्रह्माण्ड में हमारे कुल को देदिप्यमान करेगा। ठीक वैसे ही जगत में उसे महायश की प्राप्ति होगी। साथ ही वह प्रभावशाली भी इतना ही होगा।" भीमसेन से स्वप्न फल श्रवण कर सुशीला आनन्दित हो उठी और उस दिन से प्रसूति की शुभ घटिका की प्रतीक्षा करने लगी। गर्भ के तीसरे माह उसे दोहद उत्पन्न हुआ। उसने अपने दोहद की बात भीमसेन को बतलायी। उसने जताया कि वह गजारूढ़ हो, बलवान सैनिकों को साथ लेकर बड़े आडम्बर के साथ देवाधिदेव श्री वीतराग प्रभु का पूजन-अर्चन चाहती है। रानी के दोहद की बात सुनकर भीमसेन के आनन्द का वारापार न रहा। वैसे वह स्वयं भी जिनेन्द्र भगवान का परम भक्त तो था ही। और फिर सोने में सुहागे की तरह उसे यों भव्य पूजा का निमित्त मिल गया। उसने तुरन्त उसकी सम्पूर्ण व्यवस्था करवाई P.P. Ac. Gunratnasuri M.S. Jun Gun Aaradhak Trust