________________ 42 भीमसेन चरित्र बारात के साथ राजा गुणसेन ने राजगृही नगर में प्रवेश किया तब नगर जनों ने वर-वधू का सोत्साह स्वागत किया। स्थान स्थान पर उनकी आरती उतारी गयी। अक्षत और पुष्पवृष्टि कर सामान्य जनता ने बड़ी उमंग से उनका सत्कार किया। लग्न-महोत्सव निर्विघ्न सम्पन्न होने पर राजा गुणसेन ने चैन की साँस ली। उसने मन ही मन राहत अनुभव की और पुनः राज्य-संचालन की प्रवृत्तियों में आकण्ठ डूब गया। इधर भीमसेन - सुशीला भी शुक-मैना की जोड़ी बन, प्रणय क्रीडा में गोते लगाने लगे... लग्न जीवन सार्थक बनाने हेतु तन्मय हो एक दूसरे में खो गये। हरिषेण भी अब वयस्य हो गया था। उसकी आय विवाह योग्य हो गयी थी और जब किसी परिवार में पुत्र अथवा पुत्री सयानी हो जाती है तब यह स्वाभाविक है कि, माता-पिता को उसके विवाह की चिंता सताने लगती है। उसमें भी कन्या के माता-पिता की चिन्ता सविशेष होती है, जिसका कोई निराकरण नहीं होता। ____ अंग नरेश वीरसेन के एक कन्या थी सुरसुन्दरी। वह 'यथा नाम तथा गुण' की भाँति अत्यन्त लावण्यमयी और शीलवती थी। संगीत कला में वह निपुण थी और उसका कष्ट भी सुरीला था। तभी राज परिवार में वह सुरसुन्दरी नाम से विख्यात थी। समय के साथ उसने किशोरावस्था का परित्याग कर यौवनावस्था में प्रवेश कर लिया था। सर्व दृष्टि से वह विवाह योग्य बन गयी थी। फलतः कन्या के परिणय हेतु राजा वीरसेन ने अपना संदेश वाहक राजगृही भेजा। संदेश वाहक ने राज परिषद में उपस्थित होकर राजा गुणसेन के समक्ष वीरसेन का प्रस्ताव रखते हुए राजकुमार हरिषेण का परिणय सुरसुन्दरी के साथ कर, दो उच्च कुलीन राज परिवारों को एक सूत्र में बांधने का आग्रह किया। इधर राजा गुणसेन तो कई दिनों से ऐसे किसी प्रस्ताव का बड़ी उत्कंठा से प्रतीक्षा कर रहा था। तिस पर यह तो अप्रत्याशित संदेश था और वह भी समधर्मी परिवार से। फल स्वरूप गुणसेन ने वीरसेन के प्रस्ताव का सहर्ष स्वागत कर शीघ्रातिशीघ्र लग्नतिथि निश्चित करने का प्रति संदेश दे, संदेश वाहक को अंगदेश की ओर रवाना किया। अल्पावधि में ही पुनः एक बार राजगृही नगर लग्न के शोरगुल और नानाविध प्रवृत्तियों से गूंज उठा हरिषेण की वरयात्रा भी बड़े ही आडम्बर के साथ निकाली गयी। निर्धारित तिथि पर उसकी बारात अंगदेश पहुँची। राजा वीरसेन ने बड़े ठाट-बाट के साथ बारातियों का स्वागत-सत्कार किया। भव्य मंडप में स्वजन-साथियों की उपस्थिति में वीरसेन ने अपनी राजकन्या सुरसुन्दरी का राजकुमार हरिषेण के - P.P. Ac. Gunratnasuri M.S. Jun Gun Aaradhak Trust