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प्राचीन लिपिमाला.
ई.स. १८६५ में बूलर ने 'भारतवर्ष की ब्राह्मी लिपि की उत्पत्ति' विषयक एक छोटी पुस्तक अंग्रेज़ी में लिखी, जिसमें वेबर का अनुकरण कर यह सिद्ध करने का यत्न किया गया कि ब्राधी लिपि के २२ अक्षर उत्तरी सेमिटिक लिपियों से लिये गये और बाकी के उन्हींपर से बनाये ग अर्थात् कितने एक अक्षर प्राचीन फिनिशिश्मन अक्षरों से, कुछ मामय के राजा मंशा के लेम्ब के फिनिशिअन् अक्षरों से और पांच अक्षर असीरिया के तोलों पर खुदे हुए अक्षरों से मिलने हुए यतलाये हैं. इसमें बहुत कुछ बचतान की गई है जिसके विषय में आगे लिखा जायगा.
बूलर के उक्त पुस्तक के प्रकट होने के बाद चार और विद्वानों ने भी प्रसंगवशात् इस विषय में अपनी अपनी संमति प्रकट की है. उनमें से प्रॉ. मॅक्डॉनल्ड बेलर के मन को स्वीकार करता है.
डॉ. राइस विजज़' ने इस विषय के भिन्न भिन्न मतों का उल्लेख करने के पश्चात् अपनी संमति इस तरह प्रकट की है कि 'मैं यह मानने का साहस करता हूं कि इन [भिन्न भिन्न ] शोधों के एकीकरण के लिये केवल यही कल्पना हो सकती है कि ब्राह्मी लिपि के अक्षर न नो उत्तरी और न दक्षिणी सेमिटिक अक्षरों में बने हैं, किंतु जन अक्षरों से जिनसे उत्तरी और दक्षिणी सेमिटिक अक्षर स्वयं बने हे अधोत् युफ्रेटिस नदी की वादी की सेमिटिक् से पूर्व की किसी लिपि से.'
डॉ. यानेंट' बूलर का ही अनुसरण करता है और प्रो. रॅपसन्" ने उपयुक्त मांअब के लेग्न की फिनिशिनम् लिपि से ब्राह्मी लिपि की उत्पत्ति मानी है.
इस प्रकार कई यूरोपिअन् विद्वान ब्राणी लिपि की उत्पत्ति का पता लगाने के लिये हिवरेटिक (मिसर की), क्युनिफॉम् (असीरिया की), फिनिशिअन, हिमिअरेटिक (सेषिअन्), अरमइक्,
और खरोष्ठी लिपियों में से अपनी अपनी रुचि के अनुसार किसी न किसी एक की शरण लेने है. आइज़क टेलर इनमें से किसी में भी ब्राह्मी से समानता न देख मोमन , हॅ.माँट या ओर्मज़ के खंडहरों में से किसी नई लिपि के मिलने की राह देखता है और डॉ. राइस डेविज युफ्रेटिस नदी की वादी में से सेमिटिक लिपियों से पूर्व की किसी अज्ञात लिपि का पता लगा कर उपर्युत भिन्न भिन्न मतों का एकीकरण करने की आशा करता है.
यदि ऊपर लिम्वी हई लिपियों में से किसी एक की ब्राधी के साथ कुछ भी वास्तविक समानता होती तो सर्वथा इतने भिन्न मत न होते; जिस लिपि में समानता पाई जाती उसीको सब स्वीकार कर लेते, परंतु ऐसा न होना ही उपयुक्त भिन्न भिन्न कल्पनाओं का मूल हवा जो साथ ही साथ उन कल्पनाओं में हठधी का होना प्रकट करता है.
___ यह तो निश्चित है कि चाहे जिन दो लिपियों की वर्णमालाओं का परस्पर मिलान करने का उद्योग किया जावे तो कुछ अक्षरों की आकृतियां परस्पर मिल ही जाती हैं चाहे उनके उच्चारणों में कितना ही अंतर क्यों न हो. यदि वाली लिपि का वर्तमान उर्व लिपि के टाइप (छापे के अक्षरों) से मिलान किया जाये तो ब्राह्मी का 'र' । (अलिफ) से, 'ज' (ऐन) से, और 'ल' (लाम्) से मिलता हुआ है. इसी तरह यदि ब्राह्मी का वर्तमान अंग्रेजी (रोमन) टाइप से मिलान किया जावे तो 'ग' A.(ए) से, 'ध'D(डी) से, 'ज'E (ई) से. 'र' (आइ) से, 'ल' (जे) से, “उ'L(एल)से.'' 0 (ओ) से, 'प' (यू) से, 'क' x (क्म्) से और 'ओ' z (जेंड्) से बहुत कुछ मिलता हुआ है. इस प्रकार उर्दू के तीन और अंग्रेजी के दश अक्षर वामी से प्राकृति में मिलने पर भी यह नहीं कहा जा सकता कि ब्राह्मी लिपि उदया अंग्रेजी से निकली है क्यों कि समान उच्चारण वाले एक भी अक्षर में (सिवाय उर्द के 'लाम्' और ब्राली के 'ल'क) समानता, जो लिपियों के परस्पर संबंध को निश्चय करने की एक मात्र कसौटी है, पाई नहीं जाती,
१. मक् हि.सं.लि. पृ १६. * वा: प. पू.२२५.
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