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प्राचामलिपिमाला.
लिपिपत्र ५६ वां.
यह लिपिपत्र गंगावंशी राजा वजूहस्त के पाकिमेडी के दानपत्र' से तय्यार किया गया है. इस दानपत्र का लेग्वक उत्सरी और दक्षिणी शैली की भिन्न भिन्न लिपियों का ज्ञाता रहा हो और उसने इसमें अपने लिपिसंबंधी विशेष ज्ञान का परिचय देने के विचार से ही भिन्न भिन्न लिपियों का मिश्रण जान दूझ कर किया हो ऐसा अनुमान होना है. प्रसिद्ध पुरातत्ववेत्ता डॉ. कीलहॉर्न ने इस दानपत्र का संपादन करने समय इसके अक्षरों की गणना कर लिया है कि प्रायः ७.. अचरों में से ३२० नागरी में लिम्चे हैं और ४१० दक्षिणी लिपियों में प्राचीन लिपियों के सामान्य बोधवाले को भी इस लिपिपत्र के मूल अवरों को देखते ही स्पष्ट हो जायगा कि उनमें अ (पहिला), प्रा ( पहिला),ई, उ, ऋ, क ( पहिले नीन रूप), ग (पहिला), १ (पहिला), ज (पहिला), ह (इसरा), ए (पहिला), त ( पहिला), द ( पहिला व दसरा). न (पहिला), प (पहिला), भ (पहिला), म (पहिला), र (पहिला व दूसरा), ल (पहिला), व ( पहिला), श ( पहिला व इसरा), प (पहिला), स (पहिला) और ह (पहिला व दूसरा) नागरी के ही हैं. दक्षिणी शैली के अक्षरों में से अधिकतर तेलुगु-कनड़ी हैं और ग्रंथ लिपि के अक्षर कम हैं जैसे कि 'ग' ( पांचयां), ए (चौथा और पांचवां) और म (दुसरा). लिपिपत्र ५६वें की मूल पंक्तियों का नागरी अक्षरांतर
ओं म्बस्त्यभरपुरानुकारिणः सर्वर्तुसुखरमणौयाविजयवतः कलिका(ज)नगरवामकान्महेन्द्रासनामलशिखरप्रतिष्ठितस्य सचराचरगुरोस्सकलभुवननिर्माणकसधारस्य शशासाचूडामणेभगवतो गोकर्णस्वामि
१६---सामिळ लिपि. ई. म की सातवीं शताब्दी से (लिपिपत्र ६०-६२)
यह लिपि मद्रास के जिन हिस्सों में प्राचीन ग्रंथ लिपि प्रचलित थी वहां के तथा उलहाने के पश्चिमी तट अर्थात् मलबार प्रदेश के तामिल भाषा के लेखों में पल्लव, घोल, राजेन्द्रचोड आदि पूर्वी चालक्यवं राष्टकट आदि वंशों के शिलालेखों तथा दानपत्रों में एवं साधारण पुरुषों के लेखों में स. की सातवीं शताब्दी से मिलनी है इस लिपि में ' से 'श्री' तक के स्वर. और व्यंजनों में केवल क.ऊ, च, अट, प.ल.म, प, म, य र, ल, वन,ळू, र और म के चिह है. ग, ज, 'इ. द.प और श के उच्चारण भी
। एं जि .३, पृ. २२२ और ०२३ के बीच के प्लेटो से. ..एं. जि. पू. २२० ३. अब तक जितने लेग्स प्राचीन तामिळ लिपि के मिले है उनमें 'श्री' अक्षर नहीं मिला परंतु संभव है कि जैसे के सिर की दाहिनी ओर नीचको भुकी हुई बड़ी लकीर लगा कर 7 यमाया जाता था (देखो, लिपिपत्र ६० में पल्लववंशी रात्र मंविधर्मन् केकशाकदि के दामपत्र के प्रज्ञरी में देखा ही चिस'मो' के साथ औरत होगा क्योकि वर्तमान तामिळ मे जो चिश'' बनाने में भाग लिया जाता है वही 'नौ' बनाने में 'मो'के भागे रक्सा आता है जो उस प्राचीन शिकारुपांतरही है.
Aho 1 Shrutgyanam