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प्राचीन लिपिमाला.
इस संवत् के साथ जुड़ा हुआ शालिवाहन (सातवाहन ) का नाम संस्कृत साहित्य में ई. स. की १४वीं शताब्दी के प्रारंभ के आस पास से और शिलालेखादि में पहिले पहिल हरिहर गांव से मिले हुए विजयनगर के यादव राजा बुक्कराय ( प्रथम ) के शक संवत् १२७६ ( ई. स. १३५४ ) के दानपत्र में मिलता है; जिसके पीछे शालिवाहन का नाम लिखने का प्रचार बढ़ता गया. विद्वान् राजा सातवाहन (शालिवाहन) का नाम 'गाथासप्तशती' और 'बृहत्कथा' से साचरवर्ग में प्रचलित था अत एव संभव है कि ई. स. की १४वीं शताब्दी के आस पास दक्षिण के पितानों ने उत्तरी हिंदुस्तान में जलनेवाले संवत् के साथ जुड़े हुए राजा विक्रम के नाम का अनुकरण कर अपने यहां चलनेवाले 'शक' ( शक संवत् ) के साथ दक्षिण के राजा शालिवाहन ( सातवाहन हाल ) का नाम जोड़ कर 'पालिवाहनशक शालिवाहन शक' 'शालिवाहन शकवर्ष 'शालिवाहन शकाब्द' आदि से इस संवत् का परिचय देना प्रारंभ किया हो.
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शालिवाहन, सातवाहन नाम का रूपांतर मात्र है और सातवाहन (पुराणों के 'अनृत्य) वंश के राजाओं का राज्य दक्षिण पर ई. स. पूर्व की दूसरी शताब्दी से ई. स. २२५ के आस पास तक रहा था, उनकी राजधानियों में से एक प्रतिष्ठान मगर ( पेठा, गोदावरी पर) भी थी और उनमें सातवाहन (शालकर्पि, हाल ) राजा बहुत प्रसिद्ध भी था अतएव संभव है कि दक्षिण के विवानों ने उसीका नाम इस संवत् के साथ जोड़ा हो, परंतु यह निश्चित है कि सातवाहनवंशियों में से किसीने यह संवत् नहीं चलाया क्यों कि उनके शिलालेखों में यह संवत् नहीं मिलता किंतु भिन्न भिन्न राजाओं के राज्यवर्ष (सन् जुलूस) ही मिलते हैं और सातवाहन वंश का राज्य अस्त होने के पीछे अनुमान ११०० वर्ष तक शालिवाहन का नाम इस संवत् के साथ नहीं जुड़ा था. इस लिये यही मानना उचित होगा कि यह संवत् शक जाति के किसी विदेशी राजा या शक जाति का चलाया हुआ यह संवत् किस विदेशी राजा ने चलाया इस विषय में भिन्न भिन्न विद्वानों ने भिन्न भिन्न अटकलें लगाई है. कोई तुरुक (तुर्क, कुशन) वंश के राजा कनिष्क को कोई चत्रप नहपान की,
१. देखो, ऊपर पृ. १७० और टिप्पण ३, ४.
२. नृपशालिवाहन शक १२७३ ( की लि. ई. स. ई. पू. ७८ लेखसंख्या ४५५) इससे पूर्व के धाया से मिले हुए देवगिरि के यादव राजा रामचंद्र के समय के शक संवत् १९१९ (ईस. १२६० ) के दामपत्र की छपी हुई प्रति मैं ( की। लि. ई. स. ई. पू. ६७, खसंख्या ३७९ ) में 'शालिवाहन शके १९१२' छपा है परंतु डॉ. फ्लीट का कथन है कि एक ताम्रपत्र का
पता नहीं है और उसकी कोई प्रतिकृति प्रसिद्धि में आई और जैसे थाना से मिले हुए ई. स. १९७२ के दानपत्र में शालिबाइन का नाम न होने पर भी नल में जोड़ दिया गया वैसा ही इसमें भी हुआ होगा (ज. रॉ ए. सो; ई. स. १११६, पृ. ८१३). ऐसी दशा में उक्त ताम्रपत्र को शालिवाहन के नामवाला सब से पहिला लेख मान नहीं सकते. देखो इस पृष्ठ का दि. २. शालिवाहन शक १४५८मा विहस्य साहले चतुयतेः
शालिवाहन शक १४७६ १०.६४ ). १४ १२६६
त्रासयुक्त संख्याते गणितक्रमात् ॥ श्रीमुखीसरे आये माये चातिरके शिव थंब. जि. १२. पू. ३८४ ).
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रात्रा महातियां (पु)यकाले शुभे दिने (ज. प. सो
4. सातवाहन खालवाहन शालिवाहन. 'शालो हाले मास्यनंद सानपानार्थिने ( म अनेकार्यकोश). सालाहाम्म हालो ( देशीनानमाला वर्ग ८ श्लोक ६६) शालिवाहन, शालवाहन, सालवाहगा, सालवाहन, सालाडण, सातवाहन. हालेत्येकस्य नामानि ( प्रबंधचिन्तामणि, पृ. ८ का टिप्पण ). गाथासप्तशती के अंत के गद्यभाग में सातवाहन राजा को शासक (शातकणि) भी कहा है ( डॉ. पीटर्सन की ई.स.१६ की रिपोर्ट . ३४६) पुराणों में मिलनेवाली सृत्य (सातवाहन वंश के राजाओं की नामावली में शातकाल, शातकर्ण यशश्रीशातकर्णिकुंतला आदि नाम मिलते है. वास्स्यायन के 'कामसूत्र' में शातकर्णि सातवाहन का कर्तश ( कैंची ) से महादेवी मलयवती को मारना लिखा है- कर्तर्या कुतः पातकादिः यातवाहन महादेवी मलपती [जयान ] ( निर्णयसागर प्रेस का छपा हुआ
पृ. १४५ ). नासिक से मिले हुए वासिष्ठीपुत्र पुळुमाथि के लेख में उसके पिता गौतमीपुत्र सातकर्णिका शक, यवन और परहों को नष्ट करमा तथा लबरात वंश ( अर्थात् क्षत्रप महान के वंश ) को निरवशेष करना लिखा है ( ई. पू. ६०) उसी लेख से यह भी पाया जाता है कि उसके अधीन दूर दूर के देश थे. गौतमीपुत्र शतक सातवाहन वंश में प्रतल राजा हुआ था अतएव संभव है कि शक संवत् के साथ जो शातिवाहन (सातवाहन का नाम जुड़ा है वह उसीका सूचक हो और 'गाथासप्तशती', 'बृहत्कथा', तथा 'कामसूत्र' का सातवाहन भी वही हो.