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भारतीय संवत्
__ हिंदुस्तान में मुसल्मानों का अधिकार होने पर इस सन् का प्रचारास देश में हुमा मौर कभी कमी संस्कृत लेखों में भी यह सन् मिल पाता है. इसका सबसे पहिला उदाहरण महमद अजनबी के महमूदपुर (लाहोर) के सिकों पर के दूसरी ओर के संस्कृत लेखों में मिलता है। जो हिजरी सन् ४१८ और ४१६ (ई. स. १०२७ और १०२८) के हैं.
२७-शाहूर सन् शाडूर सन् को 'मूर सन्' और 'भरपी सन्' भी कहते हैं. 'शार सम्' नाम की उत्पत्ति का ठीक पता नहीं लगता परंतु अनुमान है कि अरबी भाषा में महीने को'शहर' कहते हैं और उस का पहपवन 'शहर' होता है जिसपर से 'शाहूर' शद की उत्पत्ति हुई हो । यह सन् हिजरी सम् का प्रकारांतर मात्र है. हिजरी सन् के बांद्र मास इसमें सौर माने गये हैं जिससे इस सन्का वर्ष सौर वर्ष के बराबर होता है और इसमें मौप्तिम और महीनों का संबंध बना रहता है. इस.सन में ५६६-६०० मिलाने से ई. स. और १५६-५७ मिलाने से पि. सं. बनता है इससे पाया जाता है कि तारीख १ मुहर्रम् हिजरी सन् ७४५ (ई.स. १३४४ नारीख १५ मई-वि. सं. १५०१ ज्येष शुका २) से, जब कि सूर्य मृगशिर महल पर आया था इसका प्रारंभइमा है. इसका नया वर्षे सूर्य के मृगशिर मचत्र पर आने के ( मृगे रविः) दिन से बैठता है जिससे इसके वर्ष को 'मृग माल' भी कहते हैं. इसके महीनों के नाम हिजरी सन् के महीनों के अनुसार ही हैं. यह सन् किसने चलाया इसका ठीक ठीक पता नहीं चलता परंतु संभव है कि देहली के सुलतान मुहम्मद तुगलक (इ. स. १३२५-१३५१) ने, जिसने अपनी राजधानी देहली से उठा कर देवगिरि ( दौलताबाद) में स्थिर करने का उद्योग किया था, दोनों फरलों (रबी और खरीक) का शासित नियत महीनों में लिये जाने के लिये इसे दक्षिण में चलाया हो' जैसे कि पीछे से मकबर बादशाह ने अपने राज्य में फतली सन् चलाया. इस सन् के वर्षे अंकों में नहीं किंतु अंक सूचक अरबी शब्दों में ही लिखे जाते हैं. मरहठों के राज्य में इस सन् का प्रचार रहा परंतु भवतोइसका नाममात्र रह गया है और मराठी मांगों में ही इसका उल्लेख मिलता है।
१. देखो, ऊपर पृ. १७५ और उसीका टिप्पण ४. १, ऐश्वर पॉमस रचित 'क्रॉनिकस्स प्रोपदी पठान किंग्ज् प्राफ् देहली', पृ. ५८. , डफ रचित 'हिस्टरी ऑफ दी महराज' जि. १, पृ.४०, टिप्पण: * ई.स. १८६३ का संस्करण.
४. इस सन् के वर्ष लिखने में नीचे लिखे अनुसार अंकों के स्थान में उनके सूचक अररी शम्दों का प्रयोग किया जाता है. मराठी में अरबी शब्दों के रूप कुछ कुछ बिगड़ गये हैं जो ( )चिके भीतर जे. टी. मोलेस्वर्ष के मराठीअंग्रेज़ी कोश के अनुसार दिये गये है। -अ (अहो, इहदे);२-अना (रस)३८ सलालइ ( लगी -परखा;
भ्यासा (खम्मस), ६-सित्ता (सिन-लिर); ७=सबा (सया);समानिमा (सम्मान); सतना (तिस्सा); १०-मशरा मह मशर, प्रस्ना (इसने) अशरः १३सलासह (सलास) अशर, १४ प्ररखा असर: २० प्रशरीन: ३०-सलासीन (समासीन); ४० प्ररन् । ५० खम्सीन् । ६० सिसीन् (लिन), ७०-समीन ( सम्बन); ८०-समानीन् (सम्मानीन); -तिसईन् (तिस्पेन), १००-माया ( मया ); २०० मतीन ( मयातैन); ३०० सलास माया (सजास मया); ४००-परवा माया; १०००-अलफ् ( अलक)। १००००अशर अल इन अंकसूचक शब्दों के लिखने में पहिले शम्से इकाई, दूसरे से दहाई, तीसरे से सैकड़ा और चौथे से हज़ार बतलाये जाते है जैसे कि १३१३ के लिये 'सलासो अत्रे सहास माया ष प्रक्षा'
. ज्योतिषपरिषद के नियमानुसार रामचंद्र पांडुरंग शास्त्री मोघे वाकर के तय्यार किये हुए शक संवत् १८४ (बैवादि वि. सं. १६७४) के मराठी पंखांग में वैशाख कृपया १३ (श्रमांत पूर्णिमांत उपेक्ष कृष्णा १३) शुक्रबारको 'मुगाई। लिखा है और साग में फसली सन १३२८ श्री सन १३९६ सूर सन 'तिसा अशर सलासें मया व अलक' लिखा है (तिसा- अधर-१०% समासै मया-३०० व और, अझफ-१०००. ये सब अंक मिलाने से १३१४होते है).
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