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पृष्ट पंक्ति अशुद्ध
1 ३५ कहते ह
८ ३२ परा
३७ तृषिमपि ६२७ मत्स्योरा
३० रुपये
३३ श्रणकरा
४२ "वदत् ते.
"
1
२० ३३
१.
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१४ ३४ इसस २६ २७ पारम् १८३७ म् यज्य . २२ २७ पहिला
२७ ३४ और
२६ ६ रात दिन
१२ सहित्य
शुचिपच
शुद्धियों में से बहुत सी तो छपते समय मात्राओं के टूटने या हिल जाने या अक्षरों के निकलने से हुई है. संभव है कि कितनी एक प्रतियों में इनमें से कुछयां हुई और उसी कारण से दूसरी
हो
गई हो इसलिये पाठकों से निवेदन है कि अर्थ के अनुसार उन्हें सुधार कर पढ़े
३५
३२ २३ पश्चिम
४७
२४ ३१ जामाया
४८
५५
३६ सप्ततरं
४२ पृष्ठ २यते प्रसन
37
अणकारा
'वदत्. ते
११७९४१६२८१४. ११६:१४१८२८२४
७ ई. स. पूर्व ३२६
५ हुई
१३ गोलाइदार
३७ लकरि
२ नागरा
४५ १६ 'नौ' और 'मा
AAAAAAAAAAAE
२६ १= पांचवा
३४ अकूटक २११४
ર ५ मतापि
१३ पूषय
"पावर"
... 'रचितं 'युद्धा' 'रचितं यज्य युज्य पहिलो
शुद्ध
कहते है
BBBBBBBBBBBBB
पराण
...
तृषमृषि
मृत्योरा
स्पर्षरूपं
समाक्षर
पृष्ठ
घृते प्रवृत्तानां
इससे
ओर
दिन रात
साहिल
पश्चिमी
जमाया
CRE
हुई
ई. स पूर्व २१६
लकीर
मोलाईदार
नागरी
पांच
रयितुं रवितुं युज्य
'नौ' और 'मौ'
प्रेकूटक
जटा गुहा
मातापि पूर्षेयमु
पृष्ठ. पंक्ति अशुद्ध
३२ ३२ सपत्
१५ २५ आड कर
७४
६
23
७५
T
R
१४
७६
७
२३ सी: गु. इ
३ ३८ जि. पृ १७२
८४ ६ "गोप्रद परम
८५१६ जयत्यहं
१८ 'स्वाध्य
?
agia
जिनमें स
७ सुरारिः
י
२६
श्री श्री श्री
अंश मे
८६ १६ जसी
६६ ३०
"
वालककायम १ स्व
६८
६६ १६ संयुक्राक्षिरों
१०१ ३५ सभव है
१०३ २८
३०
११६
१२ कारण:
१०४
२ १०६ ९० हाईयो
६ किन्ही ११० १६ बर्नेल
१९११ २४ अक
११६ ३२ हिंमाटिक
चिह्नों के
शंका की है
21
३४ सामनता
१९४ २२ हिरोलिफि
२६ हिरांट
२
चित्र के साथ
Aho! Shrutgyanam
सहाचार्य
रम्यदये
१६
73 २० तद्गरुवा
संवत्
जोड़ कर श्री और श्री
अंशों में सवि ... जिनमें से मुमरि. ली; गु. ५: जि. ६, पृ. १७२ 'गोमद परम'
जयत्य
⠀⠀⠀⠀⠀⠀⠀⠀⠀⠀⠀⠀⠀
...
...
.....
स्वाध्या "कारी जैसी
...
***
...
शुद्ध.
बालककामय
हस्य
संयुक्ताक्षरों
संभव है चिके
शंका है
वि के साथ
द
किन्हीं बल
ஜின்
डिमॉरि
समानता
हिपरोलिफिक
हिपरेटि
सिंहाचार्य
व्युदये लघुगुरुणा