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मारतीय संवत् कृष्णा १ से नहीं किंतु उससे सात महीने बाद मेष संक्रांति (ोर बैशाख)से होता है और महीने सगा है जिससे उनमें पच और तिथि की गणना नहीं है. जिस दिन संक्रांति का प्रवेश होता है उसके दूसरे दिन को पहिला दिन मानते हैं. इस सन में ५६३-६४ जोड़ने से ई. स. और ६५०-१ जोड़ने से वि. सं. वमता है.
३२--मगि सम्. मगि सन् बहुधा बंगाली सन् के समान ही है. अंतर केवल इतना ही है कि इसका प्रारंभ बंगाली सन् से ४५ वर्ष पीले माना जाता है. इस लिये इसमें ६३८-३६ जोड़ने से ई.स. और ६९५१६ जोड़ने से वि. सं. वमता है. इसका प्रचार बंगाल के चिटागांग जिले में है. भनुमान होता है कि वहांवालों ने बंगाल में फसली सन् का प्रचार होने से ४५ वर्ष पील समको अपनाया हो. इस सन् के 'मगि' कहलाने का ठीक कारण तो ज्ञात नहीं हुआ परंतु ऐसा माना जाता है कि आराकाम के राजा ने ई. स. की हवीं शताब्दी में चिटागांग ज़िला विजय किया था और ई. स. १६६६ में मुगलों के राज्य में वह मिखाया गया तब तक वहां पर सराकानियों अर्थान् मगों का अधिकार किसी प्रकार बना रहा था. संभव है कि मगों के नाम से यह मगि सन् कदलाया हो.
३३-इलाई सन्. बादशाह अक्सर के धर्मसंबंधी विचार पलटने पर उसने 'दीन-इ-इलाही' नाम का नया धर्म चलाने का उद्योग किया जिसके पीछे उसने 'इलाही सन् चलाया. अबदुल कादिर चदायुनी, जो अक्बर के दरबार के विद्वानों में से एक था, अपनी 'मुंनरवचुत्तवारीख' में लिखता है कि 'बादशाह अक्वर ने हिजरी सन् को मिटा कर तारीख-इ-इलाही नाम का नया मन् चलाया जिसका पहिला घर्ष बादशाह की गद्दीनशीनी का वर्ष थार वास्तव में यह सन् बादशाह अक्षर के राजावई २६ अर्थात् हिजरी सन् २ (ई. स. १५८४) से चला परंतु पूर्व के वर्षों का हिसाब लगा कर इसका मारंभ अक्चर की गहरी नशीनी के वर्ष से मान लिया गया है. अक्वर की गद्दीनशीनी तारीख २ रवीउस्सानी हिजरी सन् १६३ (ई. स. १५५६ तारीख १४ फरवरी-वि. सं. १६१२ फाल्गुन कृष्पा ४) को हुई थी परंतु उसी दिन से इसका प्रारंभ माना नहीं गया किंतु उसमे २५ दिन पीछे तारीख २८ रपी उस्मानी हि.स. १६३ (ई.स. १५५६ तारीख ११ मार्च-वि. सं. १६१२ चैत्र कृष्णा अमावास्या) से, जिस दिन कि ईरानियों के वर्ष का पहिला मदीना फरषरदीन लगा, माना गया है. इस सन् के वर्ष सौर हैं और महीनों तथा दिनों (तारीखों) के नाम ईरानी दी है. इस में दिनों (तारीखों) की संख्या नहीं किंतु १ से ३२ तक के दिनों के नियत नाम ही लिखे जाते थे.
.. प. त्रि: जि १३, पृ. ५००, ११वां संस्करण,
क ई पृ. इलाही सन् के १२ महीनों के नाम ये है-१ फरवरदी;२ वर्दियदिश्त ३ सुर्वाव: ४ तीर;५ अमरदा : ६ शहरेषर: ७ मेहराचा (प्राथान): प्राज़र (आदर). १०३:११बहमन् : १२ अरफंदिचारमः ये नाम ईरानियों के यफ्रजर्द सन् के. ही लिये गये है.
४ ईरानियों का वर्ष सौर वर्ष है. उसम तीस तीस दिन के १० महीने ई और १२ वे नहीन में ५ दिन गाथा (बहुनबद्. ओश्तवट. स्पैतोमट्. बहुदाध और हिश्तोयश्त ) के मिलाकर ३६५ दिन का वर्ष माना जाता है और. १२० वर्ष में अधिक मास महीनों के क्रम से जोड़ा जाता है जिसको कपीसा' कहते हैं, परंतु इलाही सन के महीने कुछ दिन के, कुछ ३० के, कुछ ३१के और एक ३२दिन का भी माना जाता था और वर्ष ३६५ दिन का होता था पधं चौथे घर्ष दिन और ओए दिया जाता था. महीनों के दिनों की संख्या किस हिसाब से लगाई जाती थी इसका ठीक हाल मालूम नहीं हो सका. १ से ३२ तक के दिनों के नाम ये हैं..
१ अङमन्च : २ बहमन्ः ३ उर्दिबहिश्ता ४ शहरेवर, ५ स्पंदारमा ६ खुदाद. ७ मुरदाद (समरवाद)। ८ देपादरः। बाज़र (मादर);१० श्रावां (भाषान ): ११ सुरशेवः १२ माह (म्होर): १३ तीर: १४ गोश; १५ वेपमेहरः १६ मेहर: १७ सरोशः १८ रश्नहः १६ फरवरदीनः २० बेहरामः २१ रामः २२ गोषादः ३ देपदीन; २४ दीन; २५ अर्द (अशीशंग ); २६ प्रास्ताद २७ श्रास्मान; २८ ज़मिश्रा: २६ मेहरेस्पंद; ३० अनेरा; ३१ राज़: ३२ शब. इनमें से ३० तक माम तो ईगनियों के दिनों । तारीखों ) के ही हैं और अंतिम दा नये रक्खे गये है.
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