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प्राचीनलिपिमाला.
१३-भाटिक ( मट्टिक) संवत् भाटिक (मटिक) संवत् जैसलमेर के दो शिलालेखों में मिला है. भट्टि या भट्रिक (भाटी) नामक राजा जैसलमेर के राजाओं का प्रसिद्ध पूर्वज था जिसके नाम से उसके वंशज भाटी कहलाये. यह संवत् राजा भधिक (प्राटी) का चलाया हुआ होना चाहिये जैसलमेर के लक्ष्मीनारायण के मंदिर के शिलालेख में, जो वहां के राजा वैरिसिंह के समय का है, वि. सं. १४६४ और माटिक संवत् ८१३ लिखा है। जिससे वि. सं. और भाटिक संवत का अंतर (१४६४-८१३%) ३८१ आता है. वहीं के महादेव के मंदिर के लेख में, जो रावल भीमसिंह के समय का है, वि. सं. १६७३, शक संवत् १५३८ और भाटिक संवत् ११३ मार्गशीर्ष मास लिखा है. इस हिसाब से वि.सं. और माटिक संवत के बीच का अंतर (१६७३-६४ ) १८० माता है. इन दोनों लेखों से पाया जाता है कि भाटिक संवत् में ६८०-८१ मिलाने से विक्रम संवत् और ६२३-२४ मिलामे से ई. स. नाता है,
अभी कत जैसलमेर राज्य के प्राचीन लेखों की खोज बिलकुल नहीं हुई जिससे यह पाया नहीं जाता कि कब से कब तक इस संवत् का प्रचार रहा.
१४.-कोलम् ( कोलंब ) संवत् इस संवत् को संस्कृत लेखों में कोलंब संवत् (वर्ष) और तामिळ में 'कोल्लम् मांड' (कोल्लम्-पश्चिमी, और आई-वर्ष) अर्थात् पश्चिमी [ भारत का ] संवत् लिखा है. यह संवत् किसने और किस घटना की यादगार में चलाया इस विषय में कुछ भी लिखा हुमा नहीं मिलता. इसके वर्षों को कभी 'कोल्लम् वर्ष और कभी 'कोल्लम के उर्व से वर्ष लिखते हैं, जिससे भनुमान होता है कि भारत के पश्चिमी तट पर के मलबार प्रदेश के कोल्लम् (किलोन, द्रावनकोर राज्य
१. वारण रामनाथ रहनू ने अपने इतिहास राजस्थान में भाटीजी (भाडिक, भाटी) का समय वि. सं. ३३६-३१२ लिया . २३२) जो सर्वथा मानने योग्य नहीं है. ऐसे ही भारीजी और देवराज के बीच के राजामों की नामावली पर्व देवराजकाममय बि. सं.१०४ से १०३० लिखा हे (प. २३८)वह भी ठीक नहीं है, क्यो कि जोधपर से मिलेप प्रतिहार बाउक के पि. सं. ८६४ के लेख से पाया जाता है कि महिक (भाटी) देवराज को याउक के पांखये पूर्वएयर शीलक परास्त किया था। की लि. ई. मो. ई.पू. ४७, लेखसंख्या ३३०), पाठक वि. सं. REY में विद्यमान था. पाक से शीलकसक (शीलुक, कोट, भिलादिस्य, कक मीर बाउक) प्रत्येक राजा का राजस्वकालमीसत हिसाब से २० वर्ष मामा जाये तो शीलुक का घि. सं. १५ के पास पास विद्यमान होना स्थिर होता है और उसी समय मटिक (भाटी) देवराज भी विद्यमान होना चाहिये. देषराज का ७षां पूर्वपुरुष मष्टिक (भाटी)धा (भाटी मंगलराष, मजमराब, केहर, तनो या तनुजी, विजयराज और देवराज-मेजर अर्सकिन् का जैसलमेर का गॅजेरिभर, प.-१०, और देवल संख्या ५), यदि इन राजामो का राज्यसमय भी श्रीसत हिसाब से २० वर्ष माना जाये तो भहिक (भाटी) की गारीमशीनी का समय वि. सं. १८०के करीब मा जाता है. इसलिये भाटिक (भहिक) संवत्को राजा भधिक का असया ला मामले में कोई वाधा नहीं है, चाहे वह उह. राजा के राज्याभिषेक से चला हो वा उस राजा ने अपने समय की किसी अन्य घटना की यादगार में चलाया हो.
१. संवत् श्रीविक्रमार्कसमयातीतसंवत् १४६४ वर्षे भाटिके मंवत् ८१३ प्रवतमान महामांगल्य........चंद्रे (प्रॉ. श्रीधर पार. भंडारकर की संस्कृत पुस्तकों की तलाश की ई. स. १९०४-५ और १९०५-६ की रिपोर्ट, पृ. ६५).
स्वस्ति श्रीनृपविक्रमादिता(त्य)प्तमयाात(तीत संवत् १९७३ रामाश्वभूपती वर्षे शाके १५३८ यसुरामशरके प्रवत्तमन(र्तमान) भाटिक र मान)शिर....( उपर्युक्त रिपोर्ट, पृ. ६).
श्रीमत्कोलंबवर्षे भवति गुणमणिश्रेणिरादित्यवर्मा बञ्चीपालो (रजि.२, पृ. १६०).
Aho 1 Shrutgyanam