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प्राचीनलिपिमाला.
पहिले यह संवत् नेपाल से काठियावाड़ तक चलता था. इसका अंतिम लेख बलभी (गुप्त) संवत् ६४५ (ई. स. १२६४) का मिला है जिसके पीछे इसका प्रचार विलकुल हो उठ गया.
११-गांगय संवत् कलिंगनगर (मुखलिंग, मद्रास हाते के गंजाम जिले में पाकिमेडी से २० मील पर) के गंगावंशी राजामों के कितने एक दानपत्रों में 'गांगेय संवत्' लिखा मिलता है. यह संवत् गंगावंश के किसी राजा ने चलाया होगा परंतु इसके पलानेवाले का कुछ भी पता नहीं चलता. गंगावासयों के दानपत्रों में केवल संवत्, मास, पक्ष और तिथि (या सौर दिन)दिये हुए होने तथा धार किसी में न होने से इस संवत् के प्रारंभ का ठीक ठीक निश्चय नहीं हो सकता..
__मद्रास हाते के गोदावरी ज़िले से मिले हुए महाराज प्रभाकरपद्धन के पुत्र राजा पृथ्वीमूल के राज्पवर्ष (सन् जुलस)२५वें के दानपत्र में लिखा है कि मैंने मितवर्मन के प्रिय पुत्रदाधिराज की. जिसने अन्य राजाभों के साथ रह कर इद्रमवारक को उखाड़ने में विजय पाकर विशुद्ध यश प्राप्त किया था, प्रार्थना से पिपाक नामक गांव ब्रास्पषों को दान किया'९. यदि उक्त दानपत्र का इंद्रभधारक पक नाम का वेंगी देश का पूर्वी चालुक्य (सोलंकी) राजा हो, जैसा कि डॉ. फ्लीट ने अनुमान किया है, तो उस घटना का समय है. स. ६६३ होना चाहिये, क्यों कि उक्त सन् में बेंगीदेश के चालुक्य राजा जयसिंह का देहांत होने पर उसका छोटा भाई इंद्रभहारक उसका उत्तराधिकारी हुमा था'
और केवल ७ दिन राज्य करने पाया था. ऐसे ही यदि बाषिराज को बेंगीदेश के पड़ोस के कलिंगनगर का गंगावंशी राजा इंद्रवर्मन् (राजसिंह ), जिसके दानपत [गांगेय ] संवत् ८७ और ६१ के मिले हैं, अनुमान करें, जैसा कि गॅ. सीट मे माना है, तो गांगेय संवत् ८७ ई. स. ६६३५ के जगमग होना चाहिये. परंतु इंद्रमारक के साप के युद्ध के समय तक इंद्राधिराज ने राज्य पाया हो
. मागेपवस्स(वंशसंबछ(सरगतप्रयेकपबास(ग)त (कलिंग के गंगावंशी राजा सत्यवर्मदेव के गांगेय संवत् ३५१ के दानपत्र से... जि. १४, पृ. १२). मासोपवरण (वय)प्रपर्वमानविनयराज्यसंवकरसतातथि चतुरोतरा ( "संवत्सरयतानि सीखि चतुरुचराणि) (गंगावंशी महाराज राजेद्रवर्मन् के पुत्र मनतवर्मदेव गांगेय संवत् ३०४ के दामपत्र से. ए. जि.
अ.ए.सो. जि. १६, पृ. ११६-१७. * गौः सो.प्रा. भाग,पृ. १४२.
.. एँ जि.१७, १२०. .डॉ० पार्नेट ने ई. स. ५६० से गांगेय संवत् का चसना माना है ( वा ५. पृ. ६५) परंतु उसके लिये कोई प्रमाण नही दिया. रेखा मानने के लिये कोई प्रमास भव सक न मिलने से मैंने डॉ. दानेंद को लिखा कि 'मापने ई. स. १० से गांगेय संबद का बलमा जिस आधार पर माना है बह कृपा कर मुझे सूचित कीजिये.' इसके उत्तर में विद्वान् ने अपने ता. २ पमिल है. स. १९१८ प में लिखा कि 'एन्साकोपीरिमा प्रिटेंनिका मेबपे हुए डॉ. पतीट के हिंदु कॉनॉलॉजी' (हिंदुओं की कालगणना) नामक लेख के आधार पर यह लिखा गया है'. डॉ. पलीट ने अपने उक्क लेख में लिखा है कि लेखों में जो भित्र मित्र वृत्तान्त मिलते हैं उनसे गंगावेशी राजामौ की उत्पति पश्चिमी भारत में होना पाया जाता है और उनके संवत् का प्रारंभ ई. स. ५६० से होना मामा जा सकता है जबकि सत्याभय भुवराज-द्रवर्मन में, जो गंगावंश के पहिले राजा राजसिंह द्रवर्मन् का पूर्वपुरुष और संभवतः उसका वादा था, चालुक्य राजा कीर्तिवर्मन् (पहिले)के अधीन कोंकर प्रदेश में शासन करना प्रारंभ किया था' (प. मि दि. १३, पृ.४५६:१९ संस्करण). ऑक्सीट का उपर्युक्तधन भी ठीक नहीं माना जा सकता क्यो कि उसका सारामाधार सत्याभव भुपराज-धर्म के गोवा से मिले हुए बामपर पर ही है, जिसका सारांश यह है कि रेवती शीप में रहनेवाले चार शिक्षा अधिपति (शासक)पूरशी सस्याभय-भुवराज-द्रवमन् पृथ्वीराम महाराज (चालुक्य राजा मंगबीबर) की मात्रा से विजयरावसंघस्सर २०भर्याद शाम ५३२ माघ मुदि १५ के दिन बेटाहार देश का कारेलिका गांव शिवार्य को दान किया' (ज.प. तो. जि. १०, पृ. १६४). प्रथम तो इस दामपत्र से सत्याभय भुवराज-इपर्म का गंगावंगी होना ही पाया नहीं जाता क्यों कि वह अपने को पूरबंशी सिखाता है और बापूरवंश तथा गंगापंश
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