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भारतीय संवत्.
में) नामक प्राचीन नगर से, जिसको संस्कृत लेखक 'कोलंबसन' लिखते हैं, संबंध रखनेवाली किसी घटना से यह संवत् चला हो मलवार के लोग इस को 'परशुराम का संवत्' कहते हैं तथा १००० वर्ष का चक्र, अर्थात् १००० वर्ष पूरे होने पर वर्ष फिर से प्रारंभ होना, मानते हैं और वर्तमान चक्र को चौथा चक्र बतलाते हैं परंतु ई. स. १८२५ में इस संवत् या चक्र के १००० वर्ष पूरे हो जाने पर फिर उन्होंने से वर्ष लिखना शुरू नहीं किया किंतु १००० से आगे लिखते चले जा रहे हैं जिससे
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१. कोल्लम् ( किलोन ) एक प्राचीन नगर और बंदरगाह है. दक्षिणी भारत के पश्चिमी तट पर का व्यापार का प्रसिद्ध स्थान होने के कारण पहिले मिसर, यूरप श्ररथ, चीन आदि के व्यापारी वहां माल खरीदने का श्राया करते थे. ई. स. की ७वीं शताब्दी के स्टोरिअन पादरी जेसुजवस ने किलोन का उल्लेख किया है. ई. स. ८५९ के श्रय लेखक ने 'कोलमम नाम से इसका उसेल किया है इंपीरियल गंटियर ऑफ इंडिया, जि. २१ पृ. २२ ).
२. यंबई गॅज़ेडिअर, जि. १, भाग १, पृ. १८३, टिप्पण १.
१. बल लिखता है कि इस संवत् का ई. स. ८२५ के सेप्टेयर से प्रारंभ हुआ है. ऐसा माना जाता है कि यह कोलम ( किलोन ) की स्थापना की यादगार में चला है ' ( ब सा. ई. पे पू. ७३ ), परंतु कोल्लम् शहर ई. स. १४ से बहुत पुराना है और ई. स. की ७ वीं शताब्दी का लेखक उसका उल्लेख करता है (देखो इसी पृष्ठ का दिप्पल १ ) इ लिये ई. स. ५२४ में उसका बसाया जाना और उसकी यादगार में इस संवत् का चला जाना माना नहीं जा सकता.
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नकोर राज्य के आर्किमालॉजिकल सर्वे के सुपरिंटेंडेंट डी. ए. गोपीनाथ राय का अनुमान है कि ई.स. २५ मे मस्वान् सपीर ईशी नामक ईसाई ग्यौपारी दूसरे ईसाइयों के साथ कोल्लम में आया हो और उसकी यादगार में यहां के राजा में यह संवत् चलाया हो......[ उस समय ] सारा मलबार देश वस्तुतः एक ही राजा के अधीन था और यदि उसने आशा दी हो कि मरुवान् सपीर ईशो के जहाज़ से कोलम् में उतरने के दिन से लोग अब नया ] संवत् गिना करें तो सारे मलेनाडू (मलबार ) के, जिसका वह शासक था, लोगों ने अवश्य उसे शिरोधार्य किया होगा' (दा. मा. सी; जि. २, पृ. ७६, ७८ ७६ और ता० ८ फरवरी ई. स. १६१८ के पत्र के साथ गोपीनाथराव का मेरे पास भेजा हुआ कोलम् संवत् का वृत्तान्त) गोपीनाथ राव का यह कथन भी ठीक नहीं कहा जा सकता. उक्त कथन का सारा दारसदार कोट्यं के ईसाइयों के पास से मिले हुए बट्टेळुन्तु लिपि के ताम्रलेख हैं जिनसे पाया जाता है कि मस्वात् सपीर ईशा ने कोलप मैं तिरेिस्सापलि (ईसाइयों का गिरजा बनाया और [ मलवार के राजा ] स्थाणुरवि के राज्यमय उसकी तरफ के चहां के शासक अडिगल तिरुपडि ने राजमंत्री विजयराघवदेवर श्रादि की सलाह से उस गिरजे को कुछ भूमि दी और उसकी सहायता के लिये वहां के कुछ कुटुंब भी उसके अधीन कर कुछ अधिकार भी दिये. एक ताम्रलेखों में कोई संवत् नहीं है केवल राजा के राज्यवर्ष हैं. गोपीनाथ राव ने उनकी लिपि को ई. स. ८६० और ८७० के बीच की अनुमान कर उसीपर से ई. स. ६२५ में मरुवान् सपीर ईशो के कोलम् में आने, स्थारवि के समय उसकी अवस्था ७० या ७५ वर्ष की होने और उसके कोलम् आने की यादगार में मलबार के राजा के कोल्लम् संवत् चलाने की कल्पना कर डाली परंतु न तो ई. स. ८२५ में मरुवान् सपीर ईशे के कोल्लम में आने का प्रमाण है और न ई. स. ८६० और केवी स्थारपि के विद्यमान होने का कोई सतई निस्थानम् के लेख में स्वातुर और रा केसरीवर्मन के नाम हैं परंतु राजकेसरीवर्मन को उक्त नाम का पहिला खोलवंशी राजा मानने के लिये भी कोई प्रमाण नहीं है. चोलवंश में उस नाम के कई राजा हुए हैं. किसी लेख या ताम्रपत्र में कोई निश्चित संवत् न होते की दशा में उसकी लिपि के आधार पर उसका कोई निश्चित समय मान लेना सर्वथा भ्रम ही है क्योंकि उसमें पचीस पचास ही नहीं किंतु सौ दो सौ या उससे भी अधिक वर्षों की भूल होना बहुत संभव है- जैसे के कोट्टयम् से ही मिले हुए वहेतु और मलयाळम् लिपि के वीरराघव के दानपत्र को बर्नेल ने ई. स. ७७४ का अनुमान किया था परंतु तामिळ आदि दक्षिण की भाषाओं और वहां की प्राचीन लिपियों के प्रसिद्ध विद्वान् राय बहादुर बी. वैकव्या ने इसी ताम्रपत्र का समय सप्रमाण ई. स. की १४ वीं शताब्दी बतलाया है (ऍ. इंजि. ४, पृ. २६३ ) कोई ऐसा भी कहते हैं कि मलबार के राजा बेरुमान पेरुमाल ने अपना देश छोड़ कर मक्के को प्रस्थान किया तब से यह संवत् चल' हो. 'तुहफतुल्मजाहिदीन नामक पुस्तक का कर्ता उसका हिजरी सन् २०० (ई.स. १५-१६) में मुसलमान होना बतलाता है. अश्व के किनारे के जनहार नामक स्थान में एक कर है जिसकोमलबार के अबदुर्रहमान स्यमिरी की कम बतलाते हैं और ऐसा भी कहते हैं। कि उसपर के लेख में बेरुमान का हिजरी सन् २०२ में वहां पहुंचना और २१६ में मरना लिखा है । ई ऍ, जि. ११. १. ११६डॉ. ई. पू. ७४ ), परंतु मलवार गॅज़ेटियर का कर्ता मि. इस लिखता है कि उल लेख का होना कभी प्रमाणित नहीं हुआ (मलबार गॅज़ेटियर, पृ. ४१ ). मलबार में तो यह प्रसिद्धि है कि बेहमान बौद्ध हो गया था ( गोपीनाथ राव का भेजा हुआ कोल्लम् संवत् का वृतांत), इस लिये बेरुमान के मुसल्मान हो जाने की बात पर विश्वास नहीं होता और यदि ऐसा हुआ हो तो भी उस घटना से इस संवत् का चलना माना नहीं जा सकता क्यों कि कोई हिंदू राजा मुसलमान हो जाये तो उसकी प्रजा और उसके कुटुंबी उसे बहुत ही घृणा की दृष्टि से देखेंगे और उसकी यादगार स्थिर करने की कभी चेष्टा न
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