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कलिंग लिपि. लिपिपत्र ५७ वां.
यह लिपि पूर्वी गंगावंशी राजा इंद्रधर्मन के अध्युतपुरम् के दानपत्र, राजा इंद्रवर्मन् (दुसरे) के काकोल के दानपत्र और राजा देवेंद्रवर्मन् के दानपत्र' से तय्यार किया गया है. अच्युतपुरम् के दानपत्र के अक्षरों के सिर मध्यप्रदेशी लिपि की नांई संदूक की आकृति के भीतर से भरे हुए, हैं और अ, ब, क, र आदि अक्षर समकोणवाले हैं. 'न' नागरी का सा है और बाकी के अचर मेलुगु कमड़ी से मिलते हुए हैं. चिकाकोल के दानपत्र के अक्षरों के भी सिर चौकडे, भीतर से भरे हुए हैं, और 'म' ग्रंथ लिपि की शैली का है.
लिपिपत्र ५७
की मूल पंक्तियों का नागरी अक्षरांतर
श्री स्वस्ति सर्व्वरमणीयाद्दिय कलिङ्गमगात्सकलभुवमनिर्माण कसूत्रधारस्य भगवतो गोकर्णस्वामिनञ्चरणकम
लयुगल प्रणामादपगत कस्सिको विमयमयसम्पदामाधारः स्वासिधारापरिस्पन्दाधिगतस कैलक लिङ्गाधिराज्य तुरुदधितरङ्गमे खलावनितल प्रविततामलयशा: चमेकसम.
लिपिपत्र ८.
यह लिपिrs पूर्वी गंगावंशी राजा देवेंद्रवर्मन् दुसरे ( अनंतन के पुत्र ) के गधि संवत् [२]५१० और २५४० के दो दानपत्रों से तय्यार किया गया है. पहिले दानपत्र के अक्षरों में 'अ' तीन प्रकार का है जिनमें से पहिले दो रूप नागरी हैं और तीसरा रूप मेलुगु- कनड़ी की शैली का है और लिपिपत्र ४६ में दिये हुए 'अ' के दूसरे रूप से मिलता हुआ है. उ, ए, ग ( पहिला ), ज (दुसरा), त (दूसरा ), द और न ( पहिला और दूसरा ) नागरी से मिलने हुए ही हैं. दूसरे ताम्रपत्र के अक्षरों में से अ, आ, इ, द, ध और घ नागरी के ही हैं.
लिपिपत्र ५ वें की मूल पंक्तियों' का नागरी अक्षरांतर-
स्वस्ति अमरपुरानुकारिता [:] सर्वतु (से) मुखरमयाविजयबत [:] कलिङ्गा(ज) नगराधिवासका [त्] महेन्द्रालामलशिखर प्रतिष्ठितस्य सचराचरगुरो[:] सक लभ्रुयर्मानिर्माकसू अधारस्य शशाङ्कचूडामणि()
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१. ए. ई. जि. ३, पृ. १२० और २६६ के बीच के प्लेटों से.
२. ई. ऍ जि. १३. पृ. १२२ और १२३ के बीच के प्लेटों से इस लिपिपत्र में चिकाकोल के दान का संवत् गांगद सं. १४६ कृपा है जिसको शुद्ध कर पाठक १४८ पढ़ें.
५. पं. इंजि. ३, प्र. १३९ और १३३ के बीच के प्लेटों से.
४. ये सूक्ष पंक्तियां राजा इंद्रवर्मन् के अच्युतपुरम् के दामपत्र से हैं.
४. ई. जि. १३. पू. २७४ और २७५ के बीच के सेटों से. 4.
७. ये मूल पंक्तियां देवेंद्रवर्मन के गांगेय संवत् [२]४१ के दानपत्र से है.
Aho! Shrutgyanam
जि. १८. पू. १४४ और १४५ के बीच के सेटों से.