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लखनसामग्री अकीक, स्फटिक मादि कीमती पत्थरों पर भी खुदे हुए छोटे छोटे लेख मिले हैं'.
बौद्ध लोग पत्थर की नाई मिट्टी की ईटों पर भी अपने धर्मसंबंधी सूत्रों भादि को खुदवाते थे. मथुरा के म्यूजियम में कितने एक बड़ी बड़ी ईटों के टुकड़े रखे हुए हैं जिनकी मोटाई पर एक तरफ की लंबाई की भोर ई. स. पूर्व की पहिली शताब्दी के आसपास की लिपि में मदरों की एक एक पंक्ति खुदी हुई है. अनुमान होता है कि ये इंटे दीवार मादि में एक पंक्ति में लगाई गई होंगी कि उनपर खुदा हुमा भाशय क्रम से पढ़ा जावे. गोरखपुर जिले के गोपालपुर गांव से तीन इटें भखंडित और कुछ के टुकड़े मिले हैं जिनके दोनों ओर बौद्ध सूत्र खुदे हैं, ये ईटें ११ से रंच तक लंबी और ४, से ४६ इंच तक बोली हैं और उनकी एक भोर १२ से १० और दूसरी तरफ ११ से १ तक पंक्तियां ई. स. की तीसरी या चौथी शताब्दी की लिपि में खुदी हुई हैं. नैनीताल जिले के तराई परगने में काशीपुर के निकट के उौन नामक प्राचीन किले से दो ईटें मिली हैं जिनमें से एक पर सस्प राज्ञोः श्रीपतिविमिसरा' और दूसरी पर 'राज्ञो मावृमिस. पुस' लेख खुदा हुमा है. ये लेख ई.स. की तीसरी शताब्दी के प्रासपास के होने चाहिये. कधी ईटों पर लेख खोद लेने के बाद वे पकाई जाती थी.
ईटों के अतिरिक्त कभी मिट्टी के पात्रों पर भी लेश खदवाये जाते थे और मिट्टी के लों पर भिन्न भिन्न पुरुषों, नियों भादि की मुद्राएं लगी हुई मिलती हैं, जिनके पावर उमोहए होते हैं. पुरुषों की मुद्राओं के अतिरिक्त कितने एक दलों पर बौद्धों के धर्ममंत्र 'ये धर्महेतुप्रभवा.' की मुद्रा लगी हुई भी मिलती है. यरतन एवंदेले लेख के खुदने और मुद्रा के लगने के बाद पकाये जाते थे.
सोना. बौद्धों की जातक कथामों में कभी कभी कुटुंबसंरंधी मावश्यक विषयों, राजकीय आदेशों तथा धर्म के नियमों के सुवर्ण के पत्रों पर सुदवाये जाने का उल्लेख मिलता है, परंतु सोना बहुमूल्य होने के कारण उसका उपयोग कम ही होता होगा, तनशिला के गंगू नामक स्तूप से खरोष्ठी लिपि
स्थान । जो पहिले राजा भोज की बनवाई हुई सरस्वतीकंठाभरण नामक पाउशाला थी से शिलाओं पर खुद हुए मिले हैं. मेवाड़ के महाराणा कुंभकर्ण (कुंभा) ने कीर्तिस्तंभों के विषय का कोई पुस्तक शिलाओं पर खुदवाया था जिसकी पहिली शिला का प्रारंभ का अंश चित्तौड़ के किले से मिला जिसको मैंने वहां वे उठवा कर उदयपुर के विक्टोरिया हॉल के म्यूज़ियम् में रखवाया है. मेवाड़ के महाराणा राजसिंह (प्रथम ) ने, तैलंग भट्ट मधुसूदन के पुत्र रणछोड़ भट्ट रचित 'राजप्रशस्ति' नामक २४ सगौ का महाकाव्य बड़ी बड़ी २४ शिलानों पर खुदवाकर अपने बनवाये हुए सजसमुद्र' नामक विशाल तालाब के सुंदर बंद पर २५ ताकों में लगवाया जो अब तक वहां पर सुरक्षित है. ६. स्फटिक के टुकड़े पर खुदा हुआ एक लोटा लेख भट्टिप्रोलु के स्तूप से मिला है (प.जि.२, पृ३२८ के पास का प्लेर.)
पशियाटिक सोसाइटी बंगाल के प्रासडिंग्ज, ई.स. १८६६, पृ. १००-१०३. बु. पू. १२२ के पास का प्लट .. इन लेखों की प्रतिकृतियां ई. स. १९०१ ता. ६ डिसंबर के 'पायोनिप्रर'नामक अलाहाबाद के दैनिक अंग्रेज़ी पत्र में प्रसिर हुई थी.
. बलभीपुर ( वळा, काठियावाड़ मे ) से मिले हुए मिट्टी के एक बड़े पात्र के टुकड़े पर [२००] ४०७ श्रीगुहसेन. घर" लेख है (.: जि.१४, पृ. ७५), यह पात्र वलभी के राजा गुहसेन (दूसरे के समय का गुप्त सं. २४७ (ईस. ५६६-७)का होना चाहिये.
प्रा.स रि, ई.स. १९०३-४, प्लेट ६०-६२. १. देखो, ऊपर पृ.५ और उसी पृष्ठ के टिप्पण इ. ७, ८.
महाबलीपुर ( बला, काठिभावाड़ में से मिले हुए मिट्टी के एक यके पात्र के डको पर [२००] : श्रीगुड़सेन
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