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नागरी अंको की उत्पति.
नामिळ लिपि की उत्पत्ति. तामिळ लिपि की उत्पत्ति में पहधा प्रत्येक अक्षर के प्रारंभ के कुछ रूप वही है जो ग्रंथ लिपि की उत्पत्ति में दिये गये हैं; इस लिये उनको छोड़ कर बाकी के रूपों ही का विवेचन किया जायमा,
च-ची. ६१( तिकवेळ्ळरे का लेब); पां. ३०(कूरम् का दानपत्र),
इ-द.६ ती.१२ (जागयपेट के लेव); चौ. ६० (कूरम् का दानपत्र: दूसरे की तीनों वक्र रेखाओं को चलती कलम से मिला कर लिखने से ). ई-प. ६२: द. पहिले से बना.
उ-ग्रंथ लिपि के समान. ए-ती. १४; ची ६० (कशाकूधि का दानपत्र).
ऐ--दू. (हाथीगुंफा का लेख):ती. ४५ ('ए' के साथ 'ए' की मात्रा जोड़ने से, लिपिपत्र ३८ के 'गे' की नई).
यो--ती. ६० ( उदयेंदिरम् का दानपत्र); चौ. ६२ (तिरुमले के चटान का लेख) क-दू.६० कुरम् का दामपत्र):ती. ६१ (वेल्लोर का लेख); ची. ६२(जंयुकेश्वर का ख) ङ-दृ. पहिले से बनाः ती. दसरे से रना; चौ. ६२ (विरूपाक्ष का दानपत्र) च-दृ. ६०(कृरम् का दानपत्र);ती. ६२ (चिरूपान का दानपत्र) अ-ती. ३८ (सिंहादिल्य के दानपत्र के 'ज्ञा' में); चौ. ६२ (विरूपान का दानपन्न ). ट-दृ. ६० (उदयेंदिरम् का दानपत्र). ए-.-गंध लिपि के समान. त-ग्रंथ लिपि के समान न-चौ. ६२ (विरूपाक्ष का दानपत्र). पदू. ७. म-दू. ६ती . ५८ (देवेंद्रवर्मन का दानपत्र ); ची. तीसरे से बना. य-ग्रंथ लिपि के समान. र--चौ. ५६ (श्रीरंगम् का लेख). ख-दृ. ६० (कूरम् का दामपत्र ); ती. ६१ (तिरुवेकळरे का लेख). च-ग्रंथ लिपि के समान.
२३–वर्तमान नागरी अंकों की उत्पत्ति. (लिपिपत्र के उत्तरार्द्ध का द्वितीय खंड ।
जैसे वर्तमान नागरी लिपि ब्राही लिपि में परिवर्तन होसे होते यनी है वैसे ही वर्तमान नागरी के अंक भी प्राचीन ब्राह्मी के अंकों के परिवर्तन से बने है.
--प. ७१(नानाघाट का लेख):६. ७१ ( गुप्तों के लेख):ती, चौ. ७२ (बौद्ध पुस्तक): पां. ७५ (प्रतिहार भोजदेव का दूसरा लेख ).
२-५.७१ (कुशनवंशियों के लेख): दू.७१ (गुप्ता के लेख)ती. ७२ (मि. यावर के पुस्तक).
३-प. ७१ (कुशनवंशियों के लेख):दती .७१ ( गुप्तों के लेव); चौ. १२ ( मि. यावर के पुस्तक; तीनों बकरेनाओं के परस्पर मिल जाने से ),
४-५.७१ (अशोक के लेख): द. ७१ (नानाघाट का लेख); सी. ७१ (कुशनचशियों के खोस); चो. ७१ (गुप्तों के लेख ).
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