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इस क्रम में केवल व्यंजनों से ही अंक सूचित होने हैं, स्वर निरर्थक या शून्पसूचक समझे जाते हैं और संयुक्त व्यंजन के घटक व्यंजनों में से प्रत्येक से एक एक अंक प्रकट होता है. संस्कृत लेखकों की शब्दों से अंक प्रकर करने की सामान्य परिपाटी यह है कि पहिल शब्द से इकाई दूसरे से दहाई, नीसरे से सैंकड़ा आदि अंक सूचित किये जाते हैं (अंकानां चामतो गतिः), परंतु भार्यभट ने अपने इस क्रम में उक्त परिपाटी के विरुद्ध अंक बतलाये हैं अर्थात् अंतिम अक्षर से इकाई, उपांत्य से दहाई इत्यादि. इस क्रम में १ का अंक क, ८, प, या य अक्षर से प्रकट होता है जिससे इसको 'कटपयादि' क्रम कहते हैं.
कभी कभी शिलालेखों', दानपत्रों, तथा पुस्तकों के संवत् लिखने में अंक 'कटपयादि' क्रम से दिये हुए मिलते हैं परंतु उनकी और धार्यभट (दसरे) की उपर्युक्त शैली में इतना अंतर है कि उनमें 'अंकानां वामतो गतिः' के अनुसार पहिले अक्षर से इकाई, दूसरे से दहाई प्रादि के अंक घतलाये जाते हैं और संयुक्त व्यंजनों में केवल अंतिम व्यंजन अंक सूचक होता है न कि प्रत्येक व्यंजन.
१. मार्यसिद्धांत में नहीं है, परंत दक्षिस में इस शैली के अंकों में उसका प्रयोग होता. जि.५, पृ.२०७) है इस लिये यहां दिया गया है.
२. सभी पाहिार मुरसिम चा! HREE गारखा। श्रा. सि. .
१. कनक मर (२८ )बिभोग (प्रा. सिः१।५०1. स्टभत्रोकमा) क मा १ व २० मि९ि४में विध (प्रा. सि; ५५).
. राधराय(सर) गपिते मकवर्षे.... राषवाव र संच माम( जि. ६.पू. १२१), श्रीमान्को हमनरें भनि ५४ ) गरि विदित्य वर्ग सोपाहो (ई.एँ जि.२, पृ. ३६०), समालोक (२०१५, कान्द सर पनि मचि मिया
.. मायालोकः १३५ शकाचे परिमपति * चौसषाधान (प.ई: जि.६.२६). सत्यलोक ३i मकस्याम्द क्रोधिमवरमा शुभ (ग. जि. ३, पृ ३८)
. खगोयाममा २)"न कन्याशने सति । भवानमयोनिजांना देदा दीपिका लक्षावि पद ५सिहमक । सदाशित न दिमवायार्थ पितः ॥ (ई.एँ: जि. २१. पृ. ५०). इस दो श्लाकों में पद्गुरुशिष्य ने अपनी वेदार्थदीपिका' नामक 'सर्वानुक्रमणी' की टीका की रचना कलियुग के १५६५१३२ दिन व्यतीत होने पर करना बतलाया है, इस गणना के अनुसार उक्त टीका की रचना कलियुग संघत ५२८४ - शक सं. ११०६ - वि. सं. २२४२ (तारीख २४ मार्च, ई. स. १९८४ ) में होना पाया जाता है.
इसी पत्र के टिप्पण में 'शत्यालोके' के सत्या में 'के लिये १ का अंक लिया गया है और क' तथा 'ह' को छोड़ दिया है. ऐस ही उसी टिप्पण में 'तत्वलोके' के 'स्व' के ''के लिये ४ का अंक लिया है, 'त्' के लिये कुछ नहीं. ऐसे ही टिप्पा ६ में 'स्या' और 'न्मे में प्' और 'म्' के लिये क्रमशः १ और ५ के अंक लिये हैं बाकी के अक्षरों को छोड़ दिया है.
Aho! Shrutgyanam