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प्राचीनलिपिमाला.
मैंटक और १००....के लिये हाथ फैलाये हुए पुरुष का चित्र बनाया जाता था. मिसर का सब से पुराना काम यही था जो बहुत ही जटिल और गणना की बिलकुल प्रारंभिक दशा का सूचक है. इससे फिनिशियन् क निकले हैं जिनका क्रम भी ऐसा ही है, केवल १.के वित को बारंबार लिखने की जटिलरीति को कुछ सरल बनाने के लिये उसमें २० के अंक के लिये नवीन चिशमनाया गया, जिससे ३० के लिये २० और १०० के लिये २०, २०, २०, २० और १. लिखने पड़ते थे. इस क्रम के ४ मूल अंकों में से १ का चित्र तो एक बड़ी लकीर है और १०, २० और १०० के तीन चित्रों में से एक भी उक्त अंकों के सूचक भारतीय अंक चिनों से नहीं मिलता ( देखो, पृ.११३ में दिया हुश्रा नकशा). इस लिये बेले का कथन किसी प्रकार स्वीकार नहीं किया जा सकता और इससे दूलर को भी यह लिखना पड़ा था कि मेले का कथन बड़ी भापति उपस्थित करता है.
पीछे से मिसरवालों ने किसी विदेशी सरल अंककम को देख कर अथवा अपनी बुद्धि से अपने भहेहिएरोग्लिफिक क्रम को सरल करने के लिये भारतीय अंकक्रम जैसा नवीन क्रम बनाया, जिसमें १ से १ तक के लिये ९, १० से १० तक की दहाइयों के लिये ६, और १०० तथा १००० के लिये एक एक चित्र स्थिर किया. इस काम को 'हिएरेटिक' कहते हैं और इसमें भी अंक दाहिनी भोर से बाईभोर लिखे जाते हैं. हिरेटिक और भारतीय अंकों का प्राकृतियों का परस्पर मिलान किया जाये तो अंकों के २० पिकों में से केवल ह का चिन दोनों में कुछ मिलता हुमा है; पाकी किसी में समानता नहीं है. दूसरा अंतर यह है कि हिएरेटिक अंकों में २०० से ४०० तक के बंक १०.के अंक की पाई तर क्रमशः १ से ३ खड़ी लकीरें रखने से पनते हैं परंतु भारतीय अंकों में २०० और ३०० के लिये क्रमशः १ और २ माड़ी लकीरें १०० के अंक के साथ दाहिनी ओर जोड़ी जाती हैं और ४०० के लिये वैसी ही ३ लकीरें १००केक के साथ जोड़ी नहीं जाती किंतु ४ का अंकही जोड़ा जाता है. तीसरा अंतर यह है कि हिएरेदिक में २०००से ४००० बनाने के लिये १००० के 'बंक के कुछ विकृत रूप को माया रख कर उसके ऊपर क्रमशः २ से ४ तक खड़ी लकीरें जोड़ी जाती हैं परंतु भारतीय अंकों में २०.. और ३००० के अंक तो १००० के अंक की दाहिनी घोर क्रमशः १ और २ माड़ी लकीरें जोड़ने से बनते हैं परंतु ४००० के लिये वैसी ही तीन लकीरें नहीं किंतु ४ का अंक ही जोड़ा जाता है (देखो, पृ. ११३ में दिया हुभा नक्शा.)
हेमोरिक अंक हिपरोरिक से ही निकले हैं और उन दोनों में अंतर महत कम है (देखो, पृ.११३ में दिया दुमा नक्शा ) जो समय के साथ हुआ हो. इन अंकों को भारतीय अंकों से मिलाने में पही पाया जाता है कि इनमें से केवल ६ का अंक नानाघाट के 8 से ठीक मिलता है. चाकी किसी अंक में कुछ भी समानता नहीं पाई जाती.
अपर के मिलान से पाया जाता है कि मिसर के हिपरेटिक और उससे निकले हुए रिमाांकि अंकों का क्रम तो भारतीय कमसे अवश्य मिलता है क्योंकिं १ से १००० तक के लिये २. चिक दोनों में हैं परंतु उक्त २० चिकों की मारुतियों में से केवल की भाकृति के सिवाय किसी में सामनता नहीं है, और २०० तथा ३००, एवं २००० और १००० बनाने की
सति में भी अंतर है और ४०० तथा ४००० बनाने की रीति तो दोनों में बिलकुल ही मिस
। ए.सा.जि जि. १७, पृ. ६९५.
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