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पानिलिपिमाला तापपन्न ४२ वें की मृल पंक्तियों का नागरी अक्षरांतर---
स्वस्ति शरभपुराहिकमोपनतसामन्तमकुरघडामणिप्रभामसेकान्नधौतपादयुगलो रिपुविलासिनौसौमन्तीहरण हेसुब्बसुवसुधागोमद परमभागवतो मातापिचि(४)पादानुध्यातश्रीमहासुदेवराजः क्षितिमण्डाहारौयनवन करतत्प्रावेश्यशाम्लिकयो प्रतिवासिकुटम्बिनम्समाचापयति । विदितमस्त वो यथास्माभिरेतद्वामहयं (चि)दशपतिसदनसुखप्रतिष्ठाकरो(र) यावद्रविशशिताराकिरणप्र
१३- लेस्लुगु-कनड़ी लिपि. ई. स. की पांचवी शताब्दी से (लिपिपत्र ५३ से ५३)
तेनुगु-कनड़ी लिपि का प्रचार बंबई इहाते के दक्षिणी विभाग में, हैदराबाद राज्य के दक्षिणी हिस्सों में, माईसार राज्य में तथा मद्रास इहाते के उत्तर-पूर्वी विभाग में ई. स. की पांचवीं शताब्दी के आसपास से पाया जाता है (देखो, ऊपर पृष्ठ ४३). इसमें समय के साथ परिवर्तन होते होते अक्षरों की गोलाई बढ़ने लगी और त्वरासे लिखने के कारण ई. स. की ११ वीं शताब्दी के आसपास इसके कितने एक अक्षर और १४ वीं शताब्दी के आसपास अधिकतर अक्षर वर्तमान तेलुगु और कनड़ी लिपियों से मिलते जुलते यम गये. फिर उनमें थोडासा और परिवर्तन होकर वर्तमान तेलुगु और कनाड़ी लिपियां, जो परस्पर अमृत ही मिलती हुई हैं, बनीं; इसलिये इस लिपि का नाम तेलुगु-कमड़ी कल्पना किया गया है. यह लिपि पल्लवों, कदंबा, पश्चिमी तथा पूर्वी चालुक्यों, राष्ट्रकूटों, गंगावंशियों, काकतीयों आदि कई राजवंशों तथा कई सामंतवंशों के शिलालेख तथा दानपत्रों में एवं कितने ही साधारण पुरुषों के लेखों में मिलती है. उक्त लेखादि की संख्या सैंकड़ों नहीं कि हजारों को पहंच चुकी है, और वे ऍपिग्राफिया इंडिका. ऍपिग्राफिया कर्नाटिका, इंडिअन ऍटिकरी आदि प्राचीन शोधसंबंधी अनेक पुस्तकों में छप चुके हैं.
लिपिपत्र ४३ वा. यह लिपिपत्र पल्लववंशी राजा विष्णुगोपवर्मन् के उरघुपल्लि' के, तथा उसी घंश के राजा सिंहवर्मन के पिकिर' और मंगलूर' गांवों से मिले हुए दानपत्रों से तय्यार किया गया है. विष्णुगोपधर्मन् के दानपत्रों के अक्षरों के सिर मध्यप्रदेशी लिपि की नाई बहुधा चौकूटे और भीतर से खाली है और समकोणवाले अक्षरों की संख्या कम और गोलाईदार या स्वमदार लकीरवालों की अधिक है. तोभी इसकी लिपि मध्यप्रदेशी और पश्चिमी लिपि से बहुत कुछ मिलती हुई है. सिंहवर्मन
१. ये मूल पंक्तियां महादेव के सरिअर के दानपत्र से है. १. ई. जि. ५, पृ. ५० और ५१ के बीच के पोटोस. . प. जि. ८, पृ. १६० और १६१ के बीच के प्लेटों से.
.: ज... १५४ और १४६ बीच के पोटो से.
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