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ग्राही लिपि इसी लिपिपत्र के आधारभूत एक लेख में हलंत व्यंजन पहिले पहिल मिलता है, जिसको सिरों की पंक्ति से नीचे लिखा है. इसके अतिरिक्त हलंन और सखर व्यंजन में कोई अंतर नहीं है. 'म' के साथ की 'अ' की मात्रा नागरी की 'ऊ' की मात्रा से मिलती हुई है, 'णों' में 'या' की मात्रा रंफ के साथ लगाई है. और स्वरों की संधियां बहुधा नहीं की है। लिपिपत्र सातवें की मूल पंक्तियों का नागरी अक्षरांतर
सिडाम रामः क्षहरातस्य वचपस्य नापामस्य जामापादौनीकपुषेण उपषदातेन विगोशतमासदेम मद्या(द्यो) बार्णासायां सवर्णदानतीर्थकरेण देवताभ्यः ब्राह्मणे भ्यश्च षोडशग्रामदेन अनुवर्ष बाह्मणशतसहस्त्रीभोजापयिषा प्रभासे पुख्यतौर्ये ब्राह्मणेभ्यः अष्टभार्थीप्रदेन भरुकछे दशाधुरे गोवर्धने शोरगे च चतुशालायसधप्रतिश्रयप्रदेन आरामसडागउदपानकरेण स्वापारदादमणतापीकरणादाहनुकानावापुण्यसरकरेण एतासां च नदी.
लिपिपत्र पाठवां यह लिपिपत्र उपर्युक्त अशोक के लेखवाले गिरनार के पास के चटान की पिछली तरफ़ खुदे हर महाक्षत्रप रुद्रदामन के लेख की अपने हाथ से तय्यार की हुई छाप से बनाया गया है, यह लेख शक संवत् ७२(ई.स. १५०) से कुछ पीछे का है. इस लेख में 'पौ' के साथ जो 'औ' की मात्रा जुड़ी है वह तो अशोक के लेखों की शैली से ही है और 'यो के साथ की मात्रा उसीका परिवर्तित रूप है जो पिछले लेखों में भी कुछ परिवर्तन के साथ मिल पाता है, परंतु 'नौ' और 'मा' के साथ जो 'औ' की मात्रा जुड़ी है वह तो अशोक के लेखों में और न उनसे पिछले किसी लेख में मिलती है अमएष संभव है कि वह चिा अशोक से पूर्व का हो'. हलत व्यंजन इसमें भी पंक्ति से नीचे लिखा है. लिपिपत्र आठवें की मूल पंक्तियों का नागरी अक्षरांतर
অবলম্বনালদিনা বয়সমিমাঘল माना मरेंद्रकन्न्यास्वयंवरानेकमा ल्यप्राप्तदाना महक्षचपेण रुद्रदाम्ना वर्षसहस्राय गोब्रा......य॑ धम्मकीर्त्तिवृद्धयर्थ च अपौडयित्वा करविष्टिप्रणयक्रियाभिः पौरजानपदं जमै स्वस्मात्कोशा[त] महता धनाघेम अनतिमहता च कालेन विगुणदृढतर विस्तारायाम सेतु विधा......सुदर्शनतरं कारितमिति...स्मिन्नर्थे महाक्षचपस्य मतिसचिवकर्मसचिबैरमात्यगुणममुद्युक्तरप्यतिमहत्वानेदस्यानुत्साहविमुखमसिभिः
1. ये मूल पंक्तियां
: जि.८, प्लेट, लेन संख्या १० से हैं.
देखो. ऊपर पृ. ३, हिप्पण २.
AholShrutgyanam