________________
प्राचीनलिपिमाला.
लिपिपत्र ३३ बां. पह लिपिपत्र बंगाल के राजा लक्ष्मणसेन के तर्पडिघी के दानपत्र से और कामरूप के वैद्यदेव के दानपत्र से तय्यार किया गया है. उन दोनों में 'इ और 'ई' में विशेष अंतर नहीं है. वैद्यदेव के दानपत्र का 'ऐ', 'प' से नहीं, किंतु 'इ' में कुछ परिवर्तन करके बनाया है, अनुस्वार को प्रक्षर के ऊपर नहीं किंतु आगे थरा है और उसके नीचे हलंत की सी तिरछी शकीर और लगाई है, 'ऊ' और 'ऋ' की मात्राओं में स्पष्ट असर नहीं है, 'व' और 'ब' में भेद नहीं है और सिर सीधी लकीर से नहीं किंतु ८ ऐसी लकीर से बनाये हैं, जिसका अधिक विकास उडिया लिपि के सिरों में पाया जाता है, लिपिपन्न ३३ वेंकी मूल पंक्तियों का नागरी अक्षरांतर
ओं ओं नमो भगवते वासुदेवाय ॥ स्वस्ति ॥ चम्ब(म्बारमानस्तम्भः कुम्भः संसारवी(को)जरक्षायाः । हरिदन्तरमि. समूर्तिः क्रीडायोची हरिज(ज)यति ॥ एतस्य दक्षिणदृशो वंशे मिहिरस्य जातवाम(न) पूर्व(ब) । विग्रहपाली उपसिः सव्वारा)कारविहीसं सिवः । यस्य वंशक्रमेणाभूत्सचि
किया गया है. बालमैत्र के दानपत्र में
लियिपत्र ३४ वा. यह लिपिपत्र प्रासाम से मिले हुए वल्लभद्र के दानपत्र' और हस्तलिखित पुस्तकों से तय्यार किया गया है. बस्लभेद्र.के दानपत्र में कहीं कहीं 'म' और 'ल' में, एवं '' और 'य' में, स्पष्ट अंतर नहीं है और 'व' तथा '4' में भेद नहीं है. विसर्ग की दोनों बिंदियों को चलती कलम से लिख कर एक दूसरे से मिला दिया है. लिपिपत्र ३४ थे की मूल पंक्तियों का नागरी अक्षरांतर
ओं को नमो भगवते वासुदेवाय । यहण्डमण्डलतटौप्रकटालिमामा वर्णावलौव खदले खलु मग लस्य । सम्बो(म्बो)दरः स जगतां यशसा प्रसारमानन्दतां घुमपिना सह यावदिन्दः ॥ पातालपरवल. सलाहिवमुरपतिष्योर्विष्णोः पुनातु शतष्टितनातनु.
लिपिपत्र ३५ धां. यह लिपिपत्र इस्राकोल से मिले हुए बौद्ध तांत्रिक शिलालेख तथा उड़ीसा के राजा पुरुषोत्तमदेव के दानपत्र से तय्यार किया गया है. हस्राकोल के लेख में प्रत्येक वर्षे पर मनुस्खार लगा कर पूरी वर्णमाला के बीज बनाये हैं, जिनके अनुस्वार निकाल कर यहां भक्षर ही दिये हैं. पुरुषोत्तमदेव के
१. पं. जि.१२पृ. और के बीच के मेरों से. १. पै. जि. ३.पू. ३५०और ३५३ के बीच मेरो से. । ये मून पंक्तियां पैयदेव के उपयुक्त वामपन से हैं. .. जि. प. १५२ और के बीच के मेटौसे. . ई.प.मेर६. प्राचीन अक्षरोकी पंक्ति १०-१५से. १. मूल पलियां पावके दानपन से हैं. • ज.गा.प.सोई.स.१७०८पृ. ४३२ से. .. जि. . पास पेट से.
Aho! Shrutgyanam