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माझी लिपि
इस लिपि में 'मा'की मात्रा का चिकबधा है परंतु कहीं कहीं कोण के स्थान में गोलाई भी मिलती है (देखो, का, खा, ता), 'ऊ' की मात्रा में भी अशोक के लेखों से मिलता है (देखो, जू, लू, बू) परंतु बाकी की मात्राओं में विशेष अंतर नहीं है. केवल कहीं कहीं सीधी लकीर को तिरछा या गोलाईदार बना दिया है. ---- Aधे की मूल पंक्तियों का नागरी अक्षरांतर
'कुरपितुनो र कुरमातु च कुरष च सिवका च म. जुसं पणति फाळिग घमुगं च बुधसरिरानं मिखेतु. रमनवपुलवकरच पपितकर मजस. 'उतारी पिगहपुतो काणोठी. "घरहदिनाम गोठिया मजूसप पपुगो च तेमकम येम कुविरको राजा अंकि. नेगमा वछो चघो अतो गंभी तिसो रेतो अचिना भिका असयो को केसो महो सेटोदि
लिपिपत्र पांचवां. यह लिपिपत्र पभोसा के २ लखों, मथुरा के छोटे छोटे ४ जैन लेखी तथा महाक्षत्रप शोडास के मथुरा के लेख मे तय्यार किया गया है. एमोसा के लेखों के अक्षरों में 'अ' की दाहिनी तरफ की खड़ी लकीर को नीचे के छोर से बाई तरफ मोड़कर ऊपर की ओर कुछ बढ़ा लिया है, जैसे कि ई.स. की दूसरी शताब्दी से दक्षिण के लेखों में मिलता है. 'री' में 'ई' की मात्रा और 'यू' में 'ऊ' की माला में पहिले के लिपिपत्रों से भिन्नता है (देखो, 'री' और 'पू'), मथरा के लेखों में 'स्व' और 'म के नीचे के भाग में त्रिकोण बनाया है, तीसरे 'वका सिर त्रिकोण प्राकृति का (भीतर से स्वाली) बनाया है जिससे उसकी आकृति विलक्षण हो गई है.'ळ की आकृति सांची के'ळ' से कुछ विलक्षण है जिसका कारण कलम को उठाये बिना पूरा प्रदर लिखना ही होना पाहिये. महाक्षत्रप शोडास से लेख में 'ड' का रूप नागरी के 'ड' से किसी प्रकार मिलता हआ है. लिपिपत्र पांचवें की मूल पंक्तियों का नागरी अक्षरांतर
नमो परहतो वर्धमानस्य गोतिपुषस पोठयशकवालवाळम......कोशिकिये शिमिचाये पायागपटो प...........
सातकणिस' और दूसरी ओर .......गोतम(मि)पुतष हिरुपमहातकणिष' लेख है (प के. कॉ.भा . हम दोनों लेखो की लिपियों में स्पष्ट अंतर है. पहिले लेख की लिपि आंधों के लेख और सिक्कों की ही लिपि है और सरी तरफ के लेख की लिपि संभव है कि भहितालुके लेखो की द्राविडी लिपि का परिवर्तित रूप हो (देखो, का कॉ. ए प्लेट १६. सिका संख्या ८; रा; कॉ: 'लेट ३, सिक्का संस्था ५).
१. जि. २, पृ. ३२८ के पास का प्लेट, लेख संख्या १ (A).
, तीसरा, लेख संख्या ६.
... ४. पं.
" पृ. २४२, २४३ के पास के२पोट. मि.१, पृ. ३१७ के पास का प्लेट, सेवा, ३३, जि.२ पृ. २०० के पास का प्लेट, लेख. १,५और जि. २. पृ. २०० के पास का प्लेट, लेख संख्या २. 6t.जि.१, पृ.३६७ के पास का पोट
३३.
Aho ! Shrutgyanam