________________
शारदा लिपि.
७३
१२६४ ) के सूंघा नामक पहाड़ के लेखर और मेवाड़ के गुहिलवंशी रावल समर सिंह के समय के चीरवा गांव से मिले हुए बि. सं. १३३० ( ई. स. १२७३ ) के लेख से तय्यार किया गया है. ओरिया गांव के लेख में '' के सिर नहीं है परंतु 'घ' को 'व' से स्पष्ट रूप से भिन्न बतलाने के लिये q के ऊपर बाई ओर ( ऐसी लकीर जोड़ दी है. यह रूप पिछले नागरी के लेखों तथा पुस्तकों में मिल खाता है. सूंघा के लेख की लिपि जैन है. उसके 'छ', 'ठ' आदि अक्षरों को अब तक जैन लेखक वैसा ही लिखते हैं. 'राणा' को, 'ए' लिखके बीच में आड़ी लकीर लगा कर बनाया है. यह रूप कई लेखों में मिलता है और अब तक कई पुस्तकलेखक उसको ऐसा ही लिखते हैं. चीरवा के लेख में 'ग' को 'प्र' कासा लिखा है और अन्य लेखों में भी उसका ऐसा रूप मिलता है, जिसको कोई कोई विद्वान् 'ग्र' पढ़ते भी हैं परंतु उक्त लेख का लेखक बहुत शुद्ध लिखनेवाला था अत एव उसने भूल से सर्वत्र 'ग्ग' को '' लिख दिया हो यह संभव नहीं. उसने उस समय का 'ग्ग' का प्रचलित रूप ही लिखा है जिसका नीचे का अंश प्राचीन 'ग' का ही कुछ विकृत रूप है, जैसे कोई कोई लेखक वर्तमान नागरी के 'क्त' और' को 'क्त' और 'ऋ' लिखते हैं जिनमें वर्तमान ' क ' नहीं किंतु उसका प्राचीन रूप ही लिखा जाता है.
लिपिपत्र २७ वें की मूल पंक्तियों' का नागरी अक्षरांतर
संवत् १२६५ वर्षे ॥ वैशाखशु १५ भौमे । चौलुक्यवंशोवरण परमभहारकमहाराजाधिराज श्रीमद्भौमदेवप्रवर्द्धमानविजयराज्ये श्रीकरणे महामुद्रामात्यमहं०भाभूप्रभृतिसमस्त पंचकुले परिपंथयति चंद्रावती नाथमांडलिकसुर शंभश्रीधारावर्षदेवे एकातपत्रवाहकत्वेन
८ शारदा ( कश्मीरौ ) लिपि.
ई. स. की १० वीं शताब्दी के आसपास से ( लिपिपत्र २८ से ३१ ).
शारदालिपि पंजाब के अधिकतर हिस्से और कश्मीर में प्राचीन शिलालेखों, दानपत्रों, सिक्कों" तथा हस्तलिखित पुस्तकों में मिलती है. यह लिपि नागरी की नांई कुटिल लिपि से निकली है ई. स. की ८वीं शताब्दी के मेरुवर्मा के लेखों से पाया जाता है कि उस समय तक तो उधर कुटिल लिपि का ही प्रचार था, जिसके पीछे के स्वाहम् (सह ) गांव से मिली हुई भगवती की मूर्ति के आसन पर खुदे हुए सोमट के पुत्र राजानक भोगट के लेख की लिपि भी शारदा की अपेक्षा कुटिल से अधिक मिलती हुई है. शारदालिपि का सब से पहिला लेख सराहां की प्रशस्ति' है जिसकी लिपि ई. स. की १०वीं शताब्दी के आसपास की है. यही समय शारदा लिपि की उत्पत्ति का माना जा सकता है.
१. जोधपुर निवासी मेरे विज्ञान मित्र मुन्शी देवीप्रसाद की भेजी हुई छाप से.
९. क्षीरबा गांव के मंदिर की भीत में लगे हुए उक्त लेख की अपने हाथ से तय्यार की हुई छाप से.
२. ये मूल पंक्तियां उपर्युक्त ओरिया कांच के लेख से हैं.
४. कश्मीर के उत्पल वंशी राजाओं के सिक्कों में. ४. देखो, लिपिपत्र २२ षां. फो; ऍ. स्टे पृ. १५२, प्लेट १३. कांगड़ा जिले के कीरग्राम के वैजनाथ (वैद्यनाथ ) नामक शिवमंदिर में जालंधर (कांगड़े)
देखो, लिपिपत्र २८ वां
Aho! Shrutgyanam