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प्राचीनलिपिमाला. लिपिपत्र २५ व की मूल पंक्तियों का नागरी अक्षरांतर
श्रारामोद्यामवापौष देवतायसनेषु च । कृतानि क्रियमाणामि यस्याः कर्माणि सर्वदा । दीनानाथविपन्नेष करुणाग्विसचेतसः । सत्वेष भुनते यस्या विग्रसंघा दिने दिने। प्रत्यं विविक्तमनयोः परिवईमानधर्मप्रव(ब)न्धविगलत्कलिकाला
लिपिपत्र २० बां. यह लिपिपत्र कन्नौज के गाहडवालवंशी राजा चंद्रदेव और मद पाल के वि. सं. ११५४ ( ई. स. १०६%) के दानपत्र', हस्तलिखित पुस्तका" नया हैहय( कलचुरि )वंशी राजा जाजल्लदेव. के समय के शिलालेख से तय्यार किया गया है. चंद्रदेव के दानपत्र की के परिवर्तित रूप से वर्तमान नागरी का पना है (देखो, लिपत्र ८२ में' की उत्पत्ति). 'धा में'श्रा की मात्रा की खड़ी लकीर को'ध के मध्य से एक नई भाई लकीर खींच कर जोड़ा है, जिसका कारण यह है कि 'ध' और 'व' के रूप यहा एकसाबन गर ये जेससे उनका अंतर बतलाने के लिये 'ध बहधा विना सिर के लिखा जाता था, यदि कोई कोई सिर ३ लकीर लगाते थे तो बहुत ही छोटी. ऐसी दशा में 'ध के साथ 'आ की मात्रा सिर की आड़ी लकीर साध जोड़ी नहीं जाती थी, क्योंकि ऐसा करने से 'धा' और 'बा' में अंतर नहीं रहता. इसी लिय'धा देसाथ की 'श्रा की मात्रा मध्य से जोड़ी जाती थी. चंद्रदेव के दानपत्र के अक्षरों की पंक्ति के अंत का 'म' उक्त दानपत्र से नहीं किंतु चंद्रदेव के वंशज गोविंदचंद्र के सोने के सिक्के पर के लेख से लिया गया है और इसीसे उसको अंत में अलग धरा है. जाजल्लदेव के लेख में हलंत और अवग्रह के चिन्ह उमके वर्तमान चिन्ह के समान ही हैं. उक्त लेख के अक्षरों के अंत में 'इ और 'ई' अलग दिये गये हैं जिनमें से बीजोत्या (मेवाड़ में ) के पास के चटान पर खुदे हुए चाहमान (चौहान ) वंशी राजा सोमेश्वर के समय के वि. सं. १२२६ (ई.स. ११७० ) के लेन से लिया गया है और 'ई' चौहान वंशी राजा पृथ्वीराज (तीसरे) के समय के वि. सं. १२४४ (ई.स. ११८७) के वीसलपुर (जयपुर राज्य में ) के लेख से लिया गया है. उक्त दोनों अक्षर के ऐसे रूप अन्यत्र कहीं नहीं मिलते.
लिपिपत्र २६ चे की मूल पंक्तियों क नागरी अक्षरांतर
तह श्यो है हर बासौद्यतोजायन्त हैहणः ।......त्यसेनप्रिया सती ॥३॥ तेषां हैहयभूभुजां समभवई से (गे) स चेदीश्वरः श्रीकोकाम इति स्मरप्रतिकृतिर्विस्व(व)प्रमोदा यतः । येनायं बिसौ(शौ)था......मेन मातुं यशः स्वौयं प्रेषितमुच्चकैः कियदिति (म्रोमांडमन्तः क्षिति ॥ ४॥ अष्टादशास्य रिपुकुंभिवि
लिपिपत्र २७ वा. यह लिपिपत्र आबू के परमार राजा धारावर्ष के समय के वि. सं. १२६५ (ई.स. १२०८) केमोरिभागांव के लेख',जालोर के चाहमान (चौहान)राजाचाचिगदेव के समय के वि.सं. १३
.. ये मूल पंक्तियां राजा लल्म के समय के उपर्युक्त देवल के लेख से हैं. २. ई. जि. १८, पृ. ११ के पास का लेट .. पू. प्ले ६, अक्षरों की पंक्ति १५-१६.
४. . जि. १, पृ. १४ के पास का प्लेट. .. ये मूल पंक्तियां हैहयवंशी राजा जाजमदेव के रखपुर के लेख से हैं (प. जि. १, पृ. ३४ के पास का पोट), ६. राजपूताना म्यूज़ियम (अजमेर ) में रक्ले हुए उक्त लेख की अपने हाथ से तय्यार की हुई छाप से.
Ahol Shrutgyanam