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स्वराष्ठा लिपि की उत्पत्ति भी अनार्यों से ही लिये गये? 'ट''''' और 'ण' से प्रारंभ होने वाले बहुत से धातु हैं. और जिनमें मूर्धन्य वपों का प्रयोग हुभा हो ऐसे हजारहां शब्द वैदिक साहित्य में पाये जाते हैं. ग्रीक पापों की भाषा में '' और ''ही हैं, 'स' और 'द' का सर्वथा अभाव है और सेमिटिक अनार्यों की लिपियों में मूर्धन्य वर्गों का सर्वथा मभाव पाया जाता है (देखो पृ. २३ में छपाइमा नक्शा); इसी से ग्रीकी ने फिनिशियन् अक्षर 'भाव' ('सका सूचक) से टामो ('द'), और दालेथ ('द') से डेल्टा (') बनाया. ऐसी दशा में पानू जगन्मोहनवर्मा का यह दुसरा कथन भी भादरणीय नहीं हो सकता.
-खरोष्ठी लिपि की उत्पत्ति.
मौर्यवंशी राजा अशोक के अनेक लेखों में से केवल शहबाज़गड़ी और मान्सेरा के चटानों पर खुदे हुए लेख स्वरोष्ठी लिपि में हैं, जिनसे पाया जाता है कि यह लिपि ई.स. पूर्व की
-पश्चिमी सीमांत प्रदेश के आस पास, अर्थात पंजाब के गांधार' प्रदेश में, प्रचलित थी. अशोक से पूर्व का इस लिपि का कोई शिलालेख अब तक नहीं मिला, परंतु ईरानियों के कितने एक चांदी के मारे सिक्कों पर ब्राह्मी या स्वरोष्ठी लिपि के एक एक अक्षर का ठप्पा लगा हुआ मिलता है, जिससे अनुमान होता है कि पंजाब की तरफ चलने वाले ये ईरानी सिक्के संभवतः सिकंदर से पूर्व के अर्थात् ई.स. पूर्व की चौथी शताब्दी के हों; क्योंकि सिकंदर के विजय से ईरानियों का अधिकार पंजाब पर से उठ गया था.
१. 'ट' से प्रारंभ होने वाले भातु टंच. टल, टिक, टिप्, टीक और ट्याल है.. २. '' से प्रारंभ होने वाले धातु डप, डम् , डंब, भ, डिप. डिम् और डी है. क. 'ढ' से प्रारंभ होने माला धातु दौक है
४ पाणिनि ने धातुपाठ में बहुत से धातु 'स' से आरंभ होने वाले माने हैं ( णो नः पा. ६ । १ । ६५, उपसर्मा इसमासेऽपि खोपदेशस्य पा.८१४१४)
१. युरोपिभन् विद्वानों ने 'खरोष्ठी लिपि का वाकट्रिमन वाट्रिान् पाली, मारिनोपाली. नोर्थ (उत्तरी) अशोक. काबुलिन् मौर गांधार मादि नामों से भी परिचय दिया है, परंतु हम इस लेख में खरोष्ठी' नाम का ही प्रयोग करेंगे. खरोष्ठी नाम के लिये देखो ऊपर पृ.१८.
१. राजा अशोक के लेख जिन जिन स्थानों में मिले हैं उनके लिये देखो अपर पृ. २, टिप्पस ५. उक्त दिप्पण में दिये दुप स्थानों के नामों में अलाहाबाद ( प्रयाग) का नाम भी जोड़ना चाहिये. जो वहां छपने से रह गया है.
.. प्राचीन काल में 'गांधार देश में पंजाब का पश्चिमी हिस्सा तथा अफगानिस्तान का पूर्वी हिस्सा अर्थात् उत्सर पश्चिमी सीमान्त प्रदेश के जिले पेशावर और रावलपिंडी तथा अफगानिस्तान का ज़िला काबुल गिना जाता था.
. ईरान के प्राचीन चांदी के सिके गोली की आकृति के होते थे जिनपर ठप्पा लगाने से वे कुछ चपटे पड़ जाते थे परंतु बहुत मोटे और भद्दे होते थे. उनपर कोई लेख नहीं होता था किंतु मनुष्य आदि की भही शकलो के उप्पे लगते थे. ईरान के ही नहीं किंतु लीदिमा, प्रीस, मादि के प्राचीन चांदी के सिके भी ईरामी सिक्कों की नई गोल, भदे, गोली की शकल के चांदी के टुकड़े ही होते थे. केवल हिंदुस्तान में ही प्राचीन काल में चौकुंटे या गोल चांदी के सुंदर चपटे सिके, जिन्हें कार्षापण कहते थे, बनते थे. कॉरिथित्रा वालों ने भी पीछे से चपटे सिक्के बनाये जिसकी देखा देखी दूसरे देशवालों ने भी चपटे सिक्के बनाये (क; कॉ. ए. पू. ३
.. प्रोफेसर रेपसन् ने कितने एक ईरानी चांदी के सिओके चित्र विवरण सहित छापे हैं (ज. रॉ. ए. सोः ई.स. १८६५, पृ. ६५-७७, तथा पृ.८६५ के सामने का मेट, संख्या १.२५) जिमयर ब्राझी लिपि के 'यो''', ''. 'अ' और 'गो' अक्षर और खरोष्ठी लिपि के 'म'. 'मे', 'मं,'ति' ' और '' अक्षरोके उप्पे खगेप है
Aho 1 Shrutgyanam