________________
खरोष्ठी लिपि की उत्पत्ति कुशनवंशी' राजाओं के समय के हैं इनमें से कितनं एक में राजाभों के नाम मिलते हैं,
और दूसरों में साधारण पुरुषों के ही नाम हैं, राजाओं के नहीं. ये यौद्ध स्तूपों में रक्खे हुए पत्थर आदि के पात्रों और सोने, चांदी या तांबे के पत्रों परः अथवा चटानों और शिलाओं या मृर्तियों के आसनों पर खुदे हुए मिले हैं. इनमें से अधिकतर गांधारदेश से ही मिले हैं.
और वहां भी विशेषकर तक्षशिला (शाहढेरी, पंजाब के जिले रावलपिंडी में) और चारसडा (पुष्कलावती) से. पंजाय के बाहर अफ़गानिस्तान में बर्डक (ज़िले बईक में) तथा हिड्डा (जलालाबाद से ५ मील दक्षिण) आदि में, और मथुरा में, मिले हैं, अन्यत्र' नहीं.
। शमवंशी राजाओं के समय के खगेठी लिपि के लेख अधिक संख्या में मिले है. राजा कनिष्क के समय का एक शिलालेख (सं. २९ का ज़ेदा ( जिले यसफज़ई में) से (ज.एई. स. १८६०, भाग १, पृ. १३६); एक तात्रलेख (सं.१२.का) सुपविहार (पंजाब के बहावलपुर राज्य में) से (इ.एँ: जि. 10, पृ. ३२६: धौर जि.१. पृ. १२८); एक लेख मारिकियाल से (कः पा. स.सि.जि ५, पृ.१६० के सामने का सेट) और पेशाबर के कनिष्कबिहार के स्तूप से मिले हुए डिन्ये पर खुदे हुए तीन छोटे छोटे लेख । श्रा. सः ई. स. १३०६-१०, पृ. १३६-३८) मिले है. श्रारा नामक नाले : बारानीलाथ से २ मील पर-पंजाब में) के अंदर के एक पुगने कुए में से पाझप्प के पुत्र कनिष्क के समय का एक शिलालन (सं.४. का मिला है। ई. में: जि. ३७. पृ. ५८;. हुविक के समय का एक लेख । सं. ११ का वडक अफरानिम्तान में के स्तुप में से मिले हुण. एक पीतल के पात्र पर खुदा है (ए.ई.जि. २१, पृ २१०-११). पंजतार ( ज़िले युसफज़र्जा में से एक शिलालम्ब (सं. १२२ कर । किसी गुशन | कुशन ) वंशी राजा के समय का (क; श्रा. स. रि: जि ५, पृ. १६२, और रेट १६, संख्या ४), नथा महाराज राजातिराज देवपुत्र खुशन (कुशन. उतनाम के राजा या कुशन बंशी किसीराजा का एक लखम२३६का रायपत्र पर खुदा हुश्रा तक्षशिला से मिला है (ज. रॉ. ए. सो.ई. स.१६१४, पृ. ६७५-७६ आर.स. १६१५. पृ.११२ के सामने का लेट:.
न हिदा के स्तूप से मिले हुए मिट्टी के पात्र पर सं. २८ का लरस (ज, सें. ए. स. स. १६१५, पृ. ६२, और उस के सामने का प्लेट:शकदर्ग(पंजाब के ज़िले अटक में) से मिला हुआ (सं.४० का) शिलालेख १६.प: जि. ३७, पृ. ६६);
हिंद ( युसफजई जिले में ) का ( सं. ११ का । लेख ( क: आ. स. गि: जि ५ पृ. ५८: सेट १६, संख्या २. : फतहग (ज़िले अटक में)का (सं. ६८ का) शिलालेख ज. ए:ई. स. १८९०, भाग १, पृ. १३0) मुचर (ज़िले युसफजई में) से मिला हुश्रा (म. ८२) का शिलालेख (ई.एँ; जि. ३७. पृ. ६४); बोज पहाड का ( सं २०२ का लेख (ज. प. स. १८६४, भाग २, पृ. ५१४ पाजा (ज़िले यूसफजई में) का (सं. १९१ का) शिला लेख (ई.एँ; जि. ३७, पृ. ६५); कलदर्रा नदी ( पश्चिमोत्तर सीमांन प्रदेश में दाई के पास में से मिला हुअा (सं. ११३ ) का शिलालेख {ई.एँ: जि. ३७, पृ. ६६); स्कारहरी । चारसट्टा अर्थात् हश्ननगर से - मोल उत्तर में से मिली हुई हारिती की मूर्ति के श्रासनपर खुदा हुश्रा ( सं. १७ का लग्न । आ. सः ई. स.२६०३४: पृ. २५.५: सेट ७०, संख्या ६); देवाई ( ज़िले यूसफजई में) का (सं २०० का ) शिलालेख ( ज.ए: ई. स. १८६४. भाग २, पृ ५० ): लोरिअन् तंगाई। जिले स्वात में) से मिली हुई बुद्ध की मूर्ति के प्रासन पर खुदा हुना। सं. ३२८ का लेख प्रा. स.ई. स. १६०३-४: पृ. २५५: प्लेट ७०. संख्या ४) हश्ननगर ( पेशावर ज़िले की चारमडा तहसील में से मिली हुई बुद्ध की..( अपने शिष्यो सहित) मूर्ति के आसन पर स्थुदा हुआ (सं. ३८४ का) लेख (ए. ई: जि. २२, पृ. २०२) ये सब साधारण पुरुषों के संवत् वाले लख हैं. इन लेखों में जो संवत् लिखा है वह कौन सा है यह अभी तक पूर्णतया निश्चित नहीं हुना, परंतु हमारी संमति में उनमें से अधिकतर लेखों का संवत् शक संवत् ही होना चाहिये. बिना संवत् वाले लेख ये हैं -
तक्षशिला के गंगू नामक स्तूप से मिला हुश्रा सुवर्णपत्र पर खुदा हुघा लेखकः प्रा. स. रि: जि.२. पू. १३०. और सेट ५) माणिकिसाल के स्तर से मिले हुए छोटे से रौप्यपत्र पर खुदा हुश्रा छोटा सा लेख '.ई. जि. १२. पृ ३०१) तक्षशिला के स्तर से मिला हुआ नाम्रपत्र गर का लेख ( क; आ. स रि: जि. २, प्लेट ५६, संख्या ३: ज. ए. सी. बंगा; ई. स. १६००, पृ. ३६४ : तक्षशिला के स्तूप से मिले हुए पात्र पर का लेख (प.ई: जि.८, पृ. २६६), मरेग (कालाहिसार से १० मील पश्चिम में ) के पक चौटे प्राचीन कुप में तीन तरफ एक एक छोटा लेख ( कः प्रा. स. गि: जि. २ प्लेट ५६); चारसता (पुश्कलावती) के स्तूपों से मिले हुए ५ छोटे छोटे लेख, जिनमें से मिट्टी की हंडियात्रा पर (श्रा सः १६०२-३, पृ. १६३)
और दो मूर्तियों के श्रासनों पर (आ. स. १९०२-३, पृ. १६७. १७६ खुदे हुए हैः कन्हिवाग और पठ्यार ( दोनों जिले कांगड़ा में से एक एक छोटा लेख (चटान पर खुदा). ई: जि. ७, पृ. ११८ के सामने का प्लेट): युसफज़ा जिले में सहरीबहलोल से दो, और सड़ो से एक शिलालेख, (कः श्रा. स. रिः जि. ५, सेट १६. संख्या.५ और और मांधार शैली की मूर्तियों के आसनों पर के छोटे छोटे लेख ( श्रा. सः ई. स. १६०३-४; सेट ७०. संख्या २, ३, ५, ६, ७और =).
. केवल अशोक के सिद्धापुर ( माइसोर राज्य में) के स्लेख (संख्या १) के अंत की अर्यात १३ षी पंक्ति में 'पोम लिखित' के बाद खरोष्ठी लिपि में 'लिपिकरेण' खुदा है (.; जि. ३, पृ. १३८ के सामने का लेट), जिससे अनुमान होता
Aho! Shrutgyanam