________________
स्थावर जीवों के लक्षण--
स्थावर नाम का नाम कर्म है । इस कर्म के तीन प्रकृति हैं स्थावर नाम कर्म के उदय से इस जीव को प्राप्त होनेवाली पर्याय को स्थावर कहते हैं । स्थावर जीव पृथ्वी कायिक, जल कायिक, अग्नि कायिक, वायु कायिक और वनस्पति कायिक इस प्रकार पांच प्रकार के हैं। इन पांच प्रकार के स्थावर जीवों को नियम से स्पर्शन इन्द्रिय रहती है। इनकी एकेन्द्रिय स्थावर जीव कहते हैं। इन पांच जीवों के शरीर सूक्ष्म और स्थूल रहता है । चने की दाल के समान प्राकारबाले पृथ्वी कायिक जीव है। जल बिन्दु के समान आकार वाले जल कायिक जीव है। सूई की नोक के समान अग्नि कायिक जीव हैं। ध्वजा के प्राकार वाले बाय कायिक जीव हैं । वृक्ष लता, घास इत्यादि अनेक प्रकार के बनस्पति कायिक जीव' हैं। ऐकेन्द्रिय जीव भी अनेक प्रकार के स्पर्शनेन्द्रिय और स्वासोच्छवास इस प्रकार दो मति श्रुत इस प्रकार दो, ज्ञानोपयोग और चक्ष और अचक्ष इस प्रकार दो दर्शनोपयोग ये चार भेद हैं।
इन्द्रिय-जीव के पहचानने प्रादि के साधन को इन्द्रिय कहते हैं। जीव विषय के ज्ञान होने के लिये इन्द्रिय कहते हैं यह नियम से स्पर्शन रसना घ्राण चक्षु और श्रोत्र इस प्रकार इसके पांच भेद हैं।।
१-स्पर्शन इन्द्रिय-हल्का भारी रूक्ष मदु कठोर ऐसे पाठ प्रकार के स्पर्श को स्पर्शन इन्द्रिय कहते हैं।
२-रसना-खट्टा, मीठा, क्षार, कडुवा, चरपरा इस प्रकार ये पांच रस को जानता है इसको रसना इन्द्रिय कहते हैं।
३-घ्राण इन्द्रिय--सुगन्ध और दुर्गन्ध ये दो को जानता है। ४-चक्ष- श्वेत. पीत हरित, लाल, कृष्ण ऐसे पाँच वर्ण को जामता है। ५-श्रोत्र-शब्द ज्ञान को जानता है।
मुक्त जीव
जीव के सम्पूर्ण कर्मों का नाश करके संसार से पूर्णतया मुक्त होना उसको मोक्ष कहते हैं (सर्व कर्मविप्र मोक्ष मोक्षः) प्रात्मा के जीव से सम्बन्धित ज्ञानावरणीय, दर्शनावरणीय, मोहनीय, वेदनीय वायु, नाम गोत्र, और अन्तराय समस्त पाठ कर्मों के नाश के कारण प्रात्मा के परिणाम को भाव मोक्ष कहते हैं । ये ही कर्म रूपी परमाणु का आत्मा से भिन्न होना उसको द्रव्य मोक्ष कहते हैं। मोक्ष का अर्थ है छूटना। इस शब्द के अर्थात् जन्म जरा मरण रहित और पाठ कर्मों के नाश से क्रमशः स्वयमेव अपने निजात्म का प्रादुर्भाव होने वाले निज शुद्धात्मा का जो स्वभाव है समस्त लोक और अलोक में और उसमें रहने वाले सर्व पदार्थ को और उनके त्रिकालवर्ती अनन्तानन्त पर्यायों को युगपद एक ही समय में देखने और जानने की अनन्त ज्ञान और अनन्त सुख ऐसे अव्यावाधत्व राम्यक्त दोष से रहित अवगाहन सूक्ष्मत्व लोहे के पिण्ड के समान गुरुत्व और रूई के समान लघुत्व रहित और अनंत बीर्य ये पाठ स्वाभाविक गुणों से युक्त सिद्ध भगवान होते हैं। ये जीव मिट्टी के लेप से लिप्त हा तुम्बी का फल अगर पानी में डाल दिया जाय तो बह मिट्टी हट जायेगी और तुम्बी का फल ऊपर आ जायेगा। इसी प्रकार यह जीव सम्पूर्ण कर्मों से मुक्त होता है। पहले के शरीर से कुछ कम होकर जैसे एरण्ड का बोज सूखने के बाद घप में छिलका हट जाता है और बीज ऊपर उछल जाता है इसी प्रकार यह जोव सम्पूर्ण कर्मों का नाश हो जाने से ऊर्ध्व गमन करके जहाँ तक धर्म द्रव्य है वहां तक जाकर सिद्ध शिला पर शास्वत विराजमान होता है और पुनः लौटकर संसार में नहीं पाता है। यह मुक्तजीब अनुपम, असाधारण, अखण्ड, अनीश्वर और अतीन्द्रिय से स्वाभाविक आत्मोत्थ अनन्त सुख को अनन्त काल तक अनुभव करता है। ये ही मोक्ष का मार्ग है। ये ही मोक्ष अवस्था है ये ही सिद्ध अवस्था कहलाती है, इन्हीं को सिद्ध, बुद्ध, शिव, परमात्मा आदि अनेक प्रकार के नामों से पुकारा जाता है।
अजीव द्रव्य
जीव द्रव्य में रहनेवाले ज्ञान दर्शनादि चेतना लक्षण इन्द्रिय द्रव्य प्राण दर्शन आदि उपयोग रूप भाव प्राण इष्ट अनिष्ट रूप कर्म चेतना सुख दुःख रूप कर्म फल चेतना यह कोई भी लक्षण चेतना रहित अजीव पदार्थ में नहीं रहता है इसी को अजीव कहते हैं। अचेतन कहते हैं । इस अजीव द्रव्य के पुद्गल, धर्म, अधर्म, आकाश और काल ये पांच भेद है। इसमें