Book Title: Bhadrabahu Sanhita Part 2
Author(s): Bhadrabahuswami, Kunthusagar Maharaj
Publisher: Digambar Jain Kunthu Vijay Granthamala Samiti
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भद्रबाहु संहिता
छिन्ननिमित्त : शस्त्र, आसन, वस्त्र, छत्रादि के अन्दर होने वाले छेदनादिक को देखकर शुभाशुभ कहना यह छित्र निमित्त है।
आचार्यों ने वस्त्रादिक के नौ भाग किये हैं, वस्त्रादिक के चारों कोणों पर देवता का भाग माना है, पाशान्त मूल भाग के दो भागों में मनुष्य का भाग माना हैं और मध्य के तीन भागों में राक्षस का भाग माना है। नये वस्त्र जूता, छत्र, शस्त्र, वस्त्रादिक यदि कट जाय, फट जाय अग्रि लग जाय, गोबर लग जाय, स्याही लग जाय, कीचड़ लग जाय तो अशुभ फल होता है, पुराने बस्त्र यदि उपर्युक्त हो तो, कुछ कम अशुभ होता है।
मनुष्य के भागों में यदि छेदादिक हो जाये तो वैभव प्राप्त होता है और पुत्र रत्न प्राप्त
होता है।
देवता के भाग में यदि छेदादिक हो जाय तो, धन, ऐश्वर्य भोगादिक की प्राप्ति होती
है ।
राक्षस भाग में यदि नये वस्त्रादिक जल कर उसमें छेद हो जाय तो समझो शेंग या मृत्यु होगी।
अगर तीनों ही राक्षस, देवता व मनुष्य के भागों में एक साथ छेदादिक हो जाये तो समझो महाअनिष्ट होगा । इत्यादि मूलग्रंथ के परिशिष्ट अध्यायों में देखे !
अंतरिक्ष निमित्त : ग्रहों व नक्षत्रों के उदयास्त को देखकर शुभाशुभ को जानना अंतरिक्ष निमित्त है। अंतरिक्ष निमित्तों में, सूर्य या चन्द्रमा के उदयास्त से शुभाशुभ नहीं लिया है किन्तु शुक्र, मंगल, गुरु और शनि इन पांच ग्रहों के उदयास्त होने पर शुभाशुभ होता है। कौन से नक्षत्र में कौन से ग्रह का उदय या अस्त हुआ यह निमित्त ज्ञानी देखता है फिर शुभाशुभ को कहता है, इसलिये निमित्त ज्ञानी को ग्रहों के उदयास्त की चाल को अवश्य ही जानना चाहिये, ग्रहों की चाल पहिचाने बिना भविष्य फल की जानकारी नहीं मिल सकती है। जैसे अश्विनी, रेवती, मगृशिरा, हस्त, पुष्य, पुनर्वसु, अनुराधा, श्रवण, नक्षत्रों में शुक्र का उदय, महाराष्ट्र गुजरात, सिन्धु, आसाम, बंगाल में महामारी व लड़ाई झगड़े आपस में होते हैं। इत्यादि ।
राशियों के अन्दर ग्रहों के उदयास्त का फल अलग-अलग होता है जैसे शनि का