Book Title: Bhadrabahu Sanhita Part 2
Author(s): Bhadrabahuswami, Kunthusagar Maharaj
Publisher: Digambar Jain Kunthu Vijay Granthamala Samiti
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A
भद्रबाहु संहिता
विषय
आचार्य भद्रबाहु स्वामी ने इस ग्रंथ में अष्टान निमित्तों का वर्णन किया है। शिष्यों के प्रश्नानुसार इस ग्रंथ के द्वितीय अध्याय में उत्तर रूप में कहा है।
तत: प्रोवाच
श्रमणोत्तमः । द्वादशांङ्गविशारदः ॥ १॥
भगवान् दिग्वासा; विन्यास
यथावस्थासु
तब भद्रबाहु स्वामी जो श्रमणों में उत्तम है, दिगम्बर हैं, द्वादशांग श्रुत के धारी हैं, वह आचार्य जैसा भगवान ने कहा उसी प्रकार शिष्यों को उत्तर देने लगे।
प्रथमतः उन्होंने आठों निमित्तों के नाम बताये जो इस प्रकार है, व्यंजन, अंग, स्वर, भौम, छन्द, अन्तरिक्ष, लक्षण, स्वप्न व्यंजन - मनुष्य के औदारिक शरीर में तिल, मस्सा, भौइरी, लक्षण आदि देखकर शुभाशुभ को कहना व्यंजन निमित्त हैं, जो स्त्री के बायें शरीर में हो तो शुभ और पुरुष के दाहिनी ओर हो तो शुभ माना जाता है, इससे विपरीत हो तो अशुभ माना जाता है, ऐसा सिद्धान्त ग्रंथों में भी पाया जाता है, जब अवधिज्ञानावरण कर्म का क्षयोपणम हुआ तो उस जीव को उसके शरीर में नाभि के ऊपर ऐसे शुभ चिह्न प्रकट हो जाते हैं, और अगर मिघ्या दृष्टि है तो उसके नाभि के नीचे अंगों पर ऐसे चिह्न प्रकट हो जाते हैं, जिसको कुबद्धि कहा जाता है । इत्यादि शुभ या अशुभ लक्षण जीवों के पुण्य पापानुसार भी बनते या बिगड़ते रहते हैं। पुण्य कर्म का उदय आने पर नये नये चिह्न प्रकट हो जाते हैं, पापकर्म के उदय आने पर शरीर में रहने वाले शुभ चिह्न भी नष्ट हो जाते हैं, इसीलिए आचार्यों ने जीव को सर्वथा धर्म का (पुण्य का ) पालन करने की सतत् प्रेरणा दी है। तिरेषठशलाका महापुरुषों के शरीर में ये सारे के सारे शुभ लक्षण पाये जाते हैं। विशेष आगे के अध्यायों में आचार्य श्री ने वर्णन किया है अवश्य देखे और शुभाशुभको जाने ।
अंगनिमित्त :- मनुष्य या स्त्री के शरीर अवयवों को देखकर अर्थात् हाथ, पांव, मस्तक, ललाट, छाती, नासिका, कान, दांत, जीभ, होंठ, नाखून, आँखें आदि देखकर शुभाशुभ का ज्ञान करना इसको अंगनिमित्त कहते हैं ।
जैसे उदाहरण के लिये कहा है कि जिस व्यक्ति की जीभ इतनी लम्बी हो जो नाक तक का स्पर्श करले ऐसा व्यक्ति योगी मुमुक्षु ज्ञानी होता है इत्यादि ।