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(१४) समय तकका सिद्ध करता है या नहीं ? यदि करता है वो जो श्वेताम्बरी लोग दिगम्बरी लोगोंकी उत्पत्ति विक्रमको मृत्यु १३८ वर्ष बाद बतलाते हैं यह कहना सत्य है क्या ।हमे खेद होता है कि
ताम्बराचानि इस विषय पर क्यों न लक्ष दिया। अपने ही हरिभद्रसूरिके
पक्षपातो न मे वीरे न देषः कपिलादिषु ।
युक्तिमद्वचनं यस्य तस्य कार्यः परिग्रहः ॥ इन बचनोंको क्यों भूल गये ? अथवा यो कहिये कि-"अर्धा. दोपं न पश्यति,, जिन्हें अपने ही मतलबसे काम होता है वे दूसरे की
ओर क्यों देखने वाले है ? क्या वे लोग यह न जानते थे कि यह घात छिपी न रहेगी ! हम कितनी भी क्यों न लिपवि परन्तु कभी न कमी तो उसलेमें आवेगी ही।
यह तो हम अपरही लिख आये हैं कि वराहमिहिर विक्रम के समयमें विद्यमान थे। वो अब यह निश्चय हो गया कि दिगम्बरियोंक धावत जो श्वेताम्बरियोंकी कल्पना है वह-सर्वथा मिथ्या है। उसका एक अंश भी ऐसा नहीं है जो श्रेतय हो । बल्कि दिगम्बरियाने जो श्वेताम्बरियोंकी वावत वि.सं.१३९ में उनकी उत्पत्ति लिखी है वह बिल्कुल ठीक है। इसके साक्षी वराहमिहिराचार्य है। (जिनका जनिषि कुछ भी सम्बन्ध नहीं है) उनके समयमें वेताम्बरियोंको गन्धतक नहीं थी इसीसे उन्होंने "नना " पद दिया है।
• इस विषयमें कितने श्वेताम्बर लोगोंका कहना है जो लोग जैन मनसे अपरिचित तथा प्रामीण होते हैं वे जैन मन्दिर के देखते ही झटसे कह उठते हैं कि-यह नरदेवका मन्दिर है। इसी प्रसिद्धि के अनुसार यदि वराहमिहिरने भी ऐसा लिख दिया हो तो क्या माश्चर्य है । परन्तु कहने वालोंकी यह भूल है। वराहमिहिर विक्रमकी समाके रन गिन जाते थे। वे सब शास्त्रोंक जानने वाले थे । इसलिये ऐसे अपरिचित तथा प्रामीण न थे जो वे शिर पेड़की कल्पना उठा लेते । और यह तो कहो कि उस समय तुम्हारा मत जब विद्यमान था